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________________ संतुलित आहार २०३ की प्रकृति नही है ? वात, पित्त और कफ-तीनों प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं किन्तु नामकरण अधिकता के कारण होता है | जन्म से ही कुछ लोग वात प्रकृति के होते हैं, कुछ पित्त प्रकृति के और कुछ कफ प्रकृति के होते हैं । हमें यह नहीं मान लेना चाहिए-व्यक्ति एक ही प्रकृति का है, उसमें दूसरी प्रकृति नहीं है। हम जब भी इस पर चर्चा करें तो इस सचाई को पकड़ कर करें हम केवल मुख्यता के कारण ऐसा प्रयोग कर रहे हैं। कोई द्रव्य दोषमुक्त नहीं है __ समस्या यह है कि सब द्रव्यों में सब तत्त्व मिलते हैं पर मुख्यतः कोई वात बढ़ाने वाला है, कोई पित्त बढ़ाने वाला है और कोई कफ बढ़ाने वाला है । प्रश्न है-इस स्थिति में आदमी खाएगा क्या ? __पांच मित्र गोठ करने गए ! सवने अलग-अलग काम बांट लिये । उनमें एक वैद्य था । उसके जिम्मे साग-भाजी लाने का काम था । वह बाजार गया। वह सब्जियों को एक-एक कर देखता है किन्तु खरीद नहीं पाता है । बैंगन को देखा, यह वातकरक है, करेला देखा है, यह पित्तप्रभावक है । इस प्रकार एकएक सब्जी के गुण-धर्म का विवेचन करता चला गया । एक भी चीज खरीद नहीं सका, खाली हाथ लौट पड़ा । रास्ते में नीम का पेड़ मिला । उसकी पत्तियां गिरी थीं । झोला भर लिया । मित्रों ने पूछा- क्या लाये हो ?' उसने झोला उलट दिया । मित्रों ने कहा-'यह क्या ?' वैद्य महाशय ने कहा- 'बाजार में कोई सब्जी दोषमुक्त मिली ही नहीं । यह नीम त्रिदोष नाशक है ।' योग है तीनों का पूर्ण दोषमुक्त कोई भी वस्तु नहीं है । हम कहते हैं-एसीडिटी है, पित्त की बीमारी है, कफ की बीमारी है या गैस ट्रबल है । हम ऐसा मुख्यता के आधार पर कहते हैं । गौण रूप में तीनों साथ में हैं । जहां वायु है, वहां पित्त और कफ भी है । जहां पित्त है वहां वायु और कफ भी है और जहां कफ है वहां वायु और पित्त भी है । समस्या को बढ़ाने में थोड़ा-थोड़ा हिस्सा तीनों का है इसीलिए आयुर्वेद में कहा गया-'नैकदोषास्ततो रोगाः ।' वात पित्त और कफ का मन पर प्रभाव होता है किन्तु इन्हें बढ़ाने वाले तत्त्वों का जब तक ज्ञान नहीं होगा, इनसे कैसे बच पाएंगे ? इसलिए आहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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