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मन का शरीर पर प्रभाव १९९
वाले एक व्यक्ति से पूछा-'कितनी अवस्था है ?' वह बोला---'पचपन वर्ष ।' प्राचीन काल में मान्यता थी-सत्तर वर्ष के बाद वृद्धावस्था का प्रारम्भ होता है । व्यक्ति बूढ़ा बनता है अस्सी वर्ष के बाद । हमारे एक मुनि थे । हमारे साथ रहते थे। घुटनों में दर्द था । मैंने कहा--'उपचार करवा लो ।' कहने लगे-'अब क्या है बूढ़े हो गए | दर्द को क्या मिटना है ?' कफ क्षीण होगा तो अनुत्साह की वृत्ति मन में जाग जएगी । उत्साह बनाए रखना कफ का खास कर्म है।
सकारात्मक पक्ष
वात, पित्त और कफ के ये नकारात्मक पहलू है । इसका एक सकारात्मक समाधान भी है । इसका बुरा परिणाम तब होता है जब ये बढ़ जाते हैं । जो व्यक्ति समुचित उपाय जानता है, इनकी वृद्धि नहीं होने देता, इन्हें सन्तुलित रखता है, वह इन परिणामों से बच सकता है । न कम और न ज्यादा । न वात क्षीण और न वात की वृद्धि | न पित्त क्षीण और न पित्त की वृद्धि । न कफ क्षीण और न कफ की वृद्धि । जो इस स्थिति को बनाए रखना जानता है वह समस्या को उठने ही नहीं देता । यदि समस्या उठ जाती है तो वह सुलझा लेता है ।
पनवाड़ी का बुद्धि-चातुर्य
किसी राजा के पास एक कर्मचारी था । उसक काम था, समय पर राजा को पान खिलाना । एक दिन राजा ने कहा-तुम जाओ और एक पाव चूना लेकर आओ | नौकर पनवाड़ी की दुकान पर गया, उसने एक पाव चूने की मांग की।
पनवाड़ी ने पूछा--'पाव भर चूने का क्या करोगे ?' नौकर ने कहा-'राजा ने मंगवाया है ।'
चूनेवाला बड़ा होशियार व्यक्ति था । 'चुना क्यों मंगवाया है' इस बात का रहस्य वह चतुर पनवाड़ी भांप गया । उसने नौकर से कहा---'चूना ले जाने से पहले आधा सेर घी खरीदो और उसे पीलो । उसके बाद चूना लेकर राजा के पास जाओ ।'
नौकर बोला-'राजा ने चूना मंगवाया है फिर मेरे घी पीने का क्या मतलब?'
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