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आमंत्रण आरोग्य को
वात की वृद्धि क्यों होती है ? इसे कैसे रोका जाए? यह समस्या इसीलिए उग्र बनती है कि हम यह नहीं जानते कि हमारे आहार, विहार और चर्या का हमारे आचरण से बहुत गहरा सम्बन्ध है । ऋतु का भी सम्बन्ध है किन्तु आहारविहार और चर्या का सम्बन्ध ज्यादा है । हम यह जानें--वात, पित्त और कफइन तीन तत्त्वों का मन पर क्या प्रभाव होता है ? यह भी स्पष्ट है-इन तीन तत्त्वों का बुरा प्रभाव ही मन पर नहीं पड़ता, अच्छा प्रभाव भी पड़ता है। तीनों के बुरे प्रभाव की चर्चा कर रहे हैं । तीनों के अच्छे प्रभाव भी हैं । पित्त मन पर अच्छा प्रभाव डालता है, वायु भी अच्छा प्रभाव डालती है और कफ भी अच्छा प्रभाव डालता है ।।
पित्त का प्रभाव
पित्त का प्रभाव जो मन पर होता है उसमें प्रमुख है-असहिष्णुता । क्या मान लिया जाए कि आज का युग पित्तप्रधान युग है । ऐसा लगता है-आज पित्त की प्रकृति बहुत ज्यादा है इसीलिए आदमी बहुत असहिष्णु हो गया है | आदमी में झुंझलाहट या चिड़चिड़ापन ज्यादा क्यों होता है इसका कारण हैपित्त की प्रधानता । अनिद्रा आज के युग की एक प्रमुख समस्या है | नींद की गोलियां आज के युग में जितनी प्रयोग में लाई जा रही हैं उतनी शायद अतीत में पहले कभी नहीं ली गई होंगी । अनिद्रा भी पित्तप्रधानता का एक कारण है। पित्त ज्यादा है तो नींद कम आएगी, व्यक्ति अनिद्रा का शिकार बन जाएगा। जो व्यक्ति पित्त प्रकृति वाला है अथवा अपने आहार, विहार और चर्या के द्वारा पित्त को कुपित करता रहता है, उसका व्यवहार कभी सामान्य नहीं रहेगा । उसके मन पर पित्त के सारे प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होंगे । किसी व्यक्ति में वौद्धिक क्षमता बहुत है तो यह मानना होता, पित्त बहुत अच्छा काम कर रहा है।
कफ का प्रभाव
कफ का मन पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है । कफ यदि सन्तुलित नहीं है तो व्यक्ति में उत्साह नहीं होगा । कफ क्षीण हो गया तो उत्साह मर जाएगा । बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जिसका मन बुझा-बुझा-सा होगा । वे हमेशा यही कहते मिलेंगे-'भाई ! अब क्या है ? जो होना था हो गया ? अब क्या करना है ? जो करना था कर चुके ।' मैंने इसी तरह की बात करने
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