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२. साधुवाद गोर्बाच्योव !
मानव समाज के भाग्य की डोर राजनीति की सत्ता ने अपने हाथ में थाम रखी है । यह अणुबम से अधिक खतरनाक घटना है । सत्ता की कुर्सी पर बैठे लोग मानव-समाज का हित सोच नहीं सकते । उनकी दृष्टि सदा अपनी प्रभुसत्ता को बनाए रखने और उसको विस्तार देने पर टिकी रहती है । काल्पनिक भय
और सुरक्षा के नाम पर वे संहारक अस्त्रों का निर्माण करते हैं । यह मानवता के साथ सबसे बड़ी खिलवाड़ है । दिसम्बर १९८८ में सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाच्योव ने सुंयक्त राष्ट्र संघ की महासभा में भाषण देते हुए एक उल्लेखनीय बात कही । उन्होंने कहा-'संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में जन-संगठनों की एक महासभा आयोजित होनी चाहिए, जिससे विश्व की वैकल्पिक आवाज सुनी जा सके और वह विश्व के भविष्य को प्रभावित कर सके ।' आज नये विकल्प की खोज करना और उसकी आवाज सुनना बहुत आवश्यक हो गया है । केवल सत्तधीश वर्ग का स्वर सुनते-सुनते मानवता ऊब चुकी है । अब वह नया स्वर सुनने की बाट जोह रही है पर सत्ता ने अपने आपको इतना शक्तिशाली बना लिया है कि बृहत् समाज की आवाज को मूल्य देना ही नहीं चाहती । विश्व भर के कुछ सौ लोग अपनी मनमानी कर रहे है और सारे मानव-समाज को समस्या की भट्ठी में झोंक रहे हैं । यदि सार्वजनिक संगठनों की शक्ति सत्ता की शक्ति पर अंकुश रखने की स्थिति में आ जाए तो समस्या का समाधान हो सकता है ।
दीवारों का मूल्य नहीं है
हम जिस दुनिया में जी रहे है, उसके बीच कोई दीवार नहीं है । चीन की दीवार बहुत पुरानी है । पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के बीच भी एक दीवार
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