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अहिंसा का विकास ५
है ! सुखभोग की बात बहुत-बहुत सरलता से समझ में आ जाती है । त्याग की बात समझाना अत्यन्त-अत्यन्त कठिन है | भर्तहरि के श्लोक को इस प्रकार बदला जा सकता है
सुविधा सुखमाराध्या, सुखतरमाराध्यते प्रियः सुखाभोगः ।
त्यागलवदुर्विदग्धं, सुज्ञोऽपि तं नरं न रञ्जयति ।। सचमुच ऐसा हो रहा है । त्याग और तप ध्रुव तारे बन रहे हैं । वे आकाश में चमक रहे हैं, जीवन की धरती पर नहीं उतर रहे हैं । त्याग की चेतना जागे बेना पदार्थ-भोग की सीमा नहीं होती और पदार्थ-भोग की सीमा के बिना त्याग की तेजस्विता प्रकट नहीं होती । इस समस्या का समाधान कब होगा? कौन
करेगा?
अस्वीकार की शक्ति जागे
आराम और सुख-सुविधा वर्तमान जीवन शैली के प्रमुख अंग बन गए हैं। वैज्ञानिक उपकरणों ने इस मनोवृत्ति को बहुत संपुष्ट किया है । आज के युवक को जीवन जीने की बात कहना अप्रासंगिक है । अधिकतम सुख भोगने की बात प्रासंगिक बन गई है । इस परिस्थिति में संकल्पशक्ति और मनोबल के विकास की बात सोची नहीं जा सकती । जीवन की सफलता के दो सूत्र हैं--संकल्प शक्ति और मनोबल । सुविधावादी दृष्टिकोण इन दोनों पर पर्दा डाल देता है । त्याग का पहला चरण है--संकल्प शक्ति का विकास और मनोवल का पहला चरण है-त्याग की चेतना । जो व्यक्ति अस्वीकार करना नहीं जानता, छोड़ना या त्यागना नहीं जानता, वह कभी मनोबली नहीं हो सकता ।
चिन्तन की त्रुटि
मानसिक तनाव को आज के विश्व की सबसे बड़ी समस्या माना जा रहा है । चिकित्सा के क्षेत्र में उसके उपाय खोजे जा रहे हैं। वे उपाय क्षणिक आश्वासन देते हैं | उससे आगे कारगर नहीं हो रहे हैं । मानसिक तनाव कोई बीमारी नहीं है । वह भावना का अंतर्द्वद्व है । दवा उसे कैसे मिटा सकती है? उसकी कारगर चिकित्सा है.---मनोबल का विकास | मन की तरलता में भावना की गंदगी घुलती है, वह कमजोर हो जाता है और जल्दी टूट जाता है । यदि उसे जमा दिया जाए, वह बर्फ की शिला में बदल जाए तो गंदगी उसमें घुल नहीं
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