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________________ अपना नियंत्रण अपने -द्वारा १५९ सफलता और सार्थक जीवन जीने के लिए मन का नियंत्रण बहुत जरूरी है । जो व्यक्ति मन पर नियंत्रण करना नहीं जानता वह सफलता का जीवन जी नहीं सकता | घड़ा बनने की जो प्रक्रिया है, वह खुदाई से लेकर आग में तपने तक की प्रक्रिया है । यही प्रक्रिया मन के नियंत्रण में भी लागू होती है। यह सीधी बात नहीं है, इसमें काफी सहना पड़ता है । सहते-सहते एक स्थिति ऐसी आती है, मन पर नियंत्रण हो जाता है । जब नियंत्रण की स्थिति आती है तब जीवन की सफलता और सार्थकता की अनुभूति होने लगती है । व्यक्ति सोचता है जीवन सफल हो गया, मैं धन्य हो गया । प्रश्न है-मन पर नियंत्रण कौन करता है ? इसे समझे बिना जीवन को सार्थक बनाने की विधि प्राप्त नहीं होगी । कौन है नियंत्रक ? वह किस कक्ष में बैठा-बैठा मन पर नियंत्रण करता है ? इन्द्रिय का काम - हमारे ज्ञान के तीन साधन हैं-इन्द्रिय, मन और बुद्धि | इन्द्रियों का काम है विषयों को ग्रहण करना ! शब्द, रस, रूप, गंध और स्पर्श--इन पांच विषयों को ग्रहण करने के लिए पांच कोष्ठक बने हुए हैं । एक का काम है रूप को जान लेना, दूसरे का काम है शब्द को जान लेना, तीसरे का काम है रस को जान लेना, चौथे का काम है गंध को जान लेना और पांचवें का काम है स्पर्श को जान लेना । सबका अपना-अपना निश्चित काम है । कान देखता नहीं है और आंख सुनती नहीं है | यह सामान्य नियम है । अपवाद की बात अलग है । जैन साहित्य में संभिन्न-श्रोतोलब्धि की चर्चा है । इस लब्धि का विकास हो जाए तो कान देख सकता है और आंख सुन सकती है । पर सामान्य स्थिति में ऐसा नहीं होता । प्रत्येक इन्द्रिय का अपना-अपना निश्चित काम है । कान का काम सुनना है, आंख का काम है देखना, नाक का काम है सूंघना, जीभ का काम है चखना और त्वचा का काम है छूना । पांच इन्द्रियां हैं और पांच ही विषय हैं । किन्तु इन्द्रियां तब काम करती हैं जब उनके पीछे मन की शक्ति हो, मन की प्रेरणा हो । जानने की शक्ति तो इन्द्रियों की है पर प्रेरणा है मन की | एक आदमी बैठा है । तत्काल मन में आया--आकाश में कहीं बादल तो नहीं है ? मन की प्रेरणा मिली और आंख आकाश को देखने लगी । रह मन द्वारा प्रेरित इन्द्रिय का ज्ञान है | मन की प्रेरणा होती है तो इन्द्रियां अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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