________________
३६. अपना नियंत्रण अपने द्वारा
कठिन प्रक्रिया
मिट्टी कुम्हार से बोली-'मुझे पात्र बना दो ! कुम्हार ने कहा-'क्यों ? किस लिए ?'
मिट्टी बोली-'मुझमें पानी रह सके और लोग अपनी प्यास बुझा सके तो मेरी सार्थकता होगी ।'
कुम्हार ने कहा—'तुम्हारी आकांक्षा तो ठीक है पर पात्र बनने के लिए बहुत कुछ सहना होगा ! पहले फावड़े को सहना पड़ेगा, फिर गधे को सहना पड़ेगा, फिर चाक पर चढ़ोगी, बाद में आग में तपाई जाओगी, इतना सब सहने की हिम्मत है ? यदि यह सब न सह सको तो वैसी-की-वैसी इस भूमि की गोद में पड़ी रहो ।'
मिट्टी ने कहा-'तैयार हूं !' ।
एक पूरी प्रक्रिया चली और घड़ा बन गया । खरीदा गया । गर्मी के मौसम में भोजन के बाद ठण्डा-ठण्डा पानी पिया गया । ऐसा लगा मानो अमृत ही पिया गया है । उस मिट्टी ने अपने-आपको सफल माना कि मुझमें रखा हुआ पानी कितने चाव और प्रीति के साथ पिया जा रहा है। उसे अपनी सार्थकता का भी अनुभव हुआ ।
प्रत्येक व्यक्ति के मन में सफलता की आकांक्षा होती है । वह सफल और सार्थक जीवन जीना चाहता है । कोई भी निरर्थक और विफल जीवन जीना पंसद नहीं करता । किन्तु सफल जीवन जीने के लिए कितना करना पड़ता है, इसकी यदि तैयारी हो तो सफलता निश्चित मिल सकती है । यदि वह तैयारी नहीं है तो सफलता की आकांक्षा को छोड़कर मिट्टी जैसी अवस्था में रहना होगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org