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________________ मनोबल की हानि क्यों १४९ दोषों की दवा निर्दिष्ट है । बीमारी के लक्षणों में भी ये दोष गिनाए गये हैं। इसीलिए यह होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति भी आयुर्वेदिक की तरह अध्यात्म के सन्निकट हैं | उसमें भी इन सारे दोषों की चर्चा की गई है। प्रेक्षाध्यान में भी यह चिकित्सा पद्धति विकसित है । किसी व्यक्ति को क्रोध आता है तो उसके लिए क्या चिकित्सा है ? लोभ की वृत्ति ज्यादा है तो उसके लिए क्या चिकित्सा है ? भय और क्रोध के लिए भी उपाय हैं । यदि मानसिक बीमारियों को मिटाने के लिए धर्म के पास कोई उपाय न हो तो मैं मानता हूं, वह धर्म भी निकम्मा बन जाएगा | धर्म शारीरिक बीमारियों को शायद न मिटा सके, पर मन तथा भाव की बीमारियों को भी यदि न मिटा सके तो यह बहुत चिन्ता की बात है । कोई व्यक्ति एक मुनि से कहे- 'महाराज ! क्रोध बहुत आता है, उपाय बताएं ।' मुनि यदि यह उत्तर दे– 'तुम्हारे कर्म का दोष है, तुम भूगतो' तो मैं मानता हूं इससे ज्यादा धर्म की असफलता और कोई नहीं है। धर्म की शरण में आने का अर्थ क्या है ? हम रोज उच्चारते है-'धम्म सरणं पवज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि' । व्यक्ति धर्म की शरण में क्यों जाता है ? धर्म रोटी दे सके या न दे सके पर कम-से-कम वह मन की शांति, आत्मा की शांति, भावना की शांति दे सकता है, इसीलिए व्यक्ति धर्म की शरण में जाता है | यदि धर्म से उसे यह सब उपलब्ध नहीं होता तो मानना चाहिए कि इससे ज्यादा धर्म के क्षेत्र में निराशा की कोई बात नहीं है। उपाय है प्रेक्षाध्यान प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में इस बात पर ध्यान दिया गया, शान्ति के उपायों को खोजा गया । क्रोध आता है तो उसका उपचार अलग होता है । लोभ की वृत्ति ज्यादा है तो उसके लिए अलग उपाय है | जितनी बीमारियां, उतनी दवाएं। कुछ दवाइयां सब रोगों में भी काम कर सकती है। एक आदमी में आदत है-- वह तम्बाकू पीता है, जर्दा खाता है, शराब पीता है, उसे छोड़ना चाहता है, पर छोड़ नहीं पाता । वह व्यक्ति धर्म की शरण में आता है। अभी जोधपुर से एक बहुत बड़े डॉक्टर का पत्र आया--- आर्मी का एक बहुत बड़ा ऑफिसर शराब से परेशान था । उसका लीवर काम नहीं कर रहा था । दवा से कोई लाभ नहीं हुआ । वह शराब छोड़ना चाहता है पर क्या करे । उसे कहा गयाप्रयोग के द्वारा यह आदत छोड़ी जा सकती है । प्रेक्षाध्यान के शिविरों में प्रयोग करवाया जाता है नशा-मुक्ति का, व्यसन मुक्ति का । लोग प्रयोग करत हैं, नशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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