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________________ ५३४ आमंत्रण आरोग्य को भोजन भी प्राप्त नहीं हुआ । आचार्य भिक्षु ने इनको समभाव से सहा । उनके लिए भोजन का अभाव नहीं था । यदि वे पहले वाले मार्ग पर चलते तो भोजन की कोई कमी नहीं रहती। पर उन्होंने क्रांति कर जिस राह पर चलने का संकल्प किया. वह कठिनाइयों से भरा पड़ा था । वे मनोबली थे | उन्हेंने कष्ट सहे पर मार्ग को नहीं छोड़ा । मध्यमसत्त्व दूसरा है—मध्यम मनोबल । मध्यमसत्त्व वाला व्यक्ति कठिनाई को हंसतेहंसते नहीं झेल पाता । उसे कोई सहारा चाहिए । वह यह सोचता है कि अमुक आदमी भी इतना कष्ट सहता है, मैं भी कुछ सहूं । अथवा कोई उपदेश मिला, किसी ने समझाया-बुझाया और वह कष्ट झेल लेता है । जो मध्यम सत्त्व या मध्यम मनोबल वाला व्यक्ति होता है, उसका मनोबल समझाने से उदित हो जाता है। स्थानांग सूत्र का एक प्रसंग है | एक साधु रोग-ग्रस्त हुआ । वह सामान्य साधक था । रोग से आकुल-व्याकुल हो गया । वह अधीर हो गया । दूसरे साधक ने कहा तुम ! इतने अधीर क्यों हो रहे हो? देखो ! जिनकल्पी मुनि कष्टों की उदीरणा करते हैं, कष्टों को आमंत्रित करते हैं, उनको समभाव से सहते हैं, कभी अधीर नहीं होते । तुम्हारे रोग हुआ है । उसे समभाव से सहन करो । इस उपदेश से उसका मनोबल सबल बनता है और अधीरता मिट जाती है । यह है मध्यम मनोबल की बात । अवर सत्त्व तीसरे प्रकार का मनोबल है- अल्प मनोबल, अवरसत्त्व । इस मनोबल वाले व्यक्ति को कितना ही समझाया जाए, उसका मनोबल नहीं जागता । थोड़ीसी आपदा में वह अधीर हो उठता है, घुटने टेक देता है । रामायण की सीरियल चल रही थी, उसमें यह दिखाया गया कि लंका का दहन हो रहा है, बाली को मारा जा रहा है । टी० वी० देखते-देखते दो अध्यापिकाओं का हार्ट फेल हो गया । वे इसे सहन नहीं कर सकीं । यह है अवरसत्त्व, अल्प मनोबल की घटना । ऐसे व्यक्ति किसी भी घटना को सहन नहीं कर पाते । थोड़ा-सा कुछ होता है और हाय-हाय करने लग जाते हैं | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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