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________________ ३२. मनोबल के तीन रूप जिसके पास बल नहीं होता, वह दरिद्र होता है । संपन्न वह होता है, जो सबल होता है | बल चाहे शरीर का हो, मन का हो, या बुद्धि का हो, इनसे व्यक्ति सबल होता है, संपन्न होता है । जिसमें किसी भी प्रकार का बल नहीं होता, वह दरिद्र होता है । इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति बलवान बनना चाहता है | शरीर का बल आवश्यक है परन्तु उससे भी अधिक आवश्यक है मन का बल । मनोबल : तीन प्रकार यह दुनिया बड़ी विचित्र है, समस्याओं से आकुल है । बाहर भी समस्या है, भीतर भी समस्या है, मन से पैदा की हुई समस्या भी है, भावना से उत्पन्न समस्या भी है, ऋतु और पड़ोसी के द्वारा उत्पन्न समस्या भी है। असंख्य समस्याओं के बीच रहना और सुख तथा आनन्द के साथ जीना मनोबल के बिना संभव नहीं हो सकता । इसलिए अत्यन्त जरूरी है मनोबल का विकास । जैसे शरीर-बल के तीन प्रकार हैं, वैसे ही मनोबल के भी तीन प्रकार हैं—सहज, कालकृत और युक्तिकृत | कुछ व्यक्तियों में मनोबल जन्मजात होता है । कुछ लोगों में वह सहज नहीं होता किन्तु अमुक-अमुक काल में वह पैदा होता है । ऋतुचक्र का मनोबल पर प्रभाव पड़ता है | जितना मनोबल प्रातःकाल में होता है, मध्याह्न में होता है, उतना सायंकाल में नहीं होता । कालकृत मनोबल विज्ञान की एक नयी शाखा विकसित हुई है । वह है 'जैविक घड़ी' (बायोलोजिकल वाच) । हमारे भीतर एक जैविक घड़ी है । वह समय-समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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