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१२२ आमंत्रण आराग्य का
सफलता : घटक तत्त्व
प्रत्येक मनुष्य सफल जीवन जीना चाहता है, विफलता का जीवन जीन कोई नहीं चाहता | सफलता का जीवन मूल्यवान होता है । पश के जीने में
और आदमी के जीने में अन्तर ही क्या है ? अन्तर है सफलता का । मनुष्ट सफलता को प्राप्त करता हुआ इतना आगे बढ़ जाता है कि वह अपनी अलग पहचान बना लेता है । पशु यह नहीं कर पाता । हजारों वर्ष बीत गए । किस भी पशु ने अपनी अलग पहचान नहीं बनाई । परन्तु मनुष्य कितना आगे बढ़ गया। आज भी वह निरन्तर आगे कदम बढ़ाता जा रहा है । वह नई-नई सफलताओ को प्राप्त कर विकास के शिखर को छू रहा है ।
प्रश्न होता है, सफलता के घटक तत्त्व क्या हैं ? सफलता कब मिलती है ? सफलता के दो घटक तत्त्व हैं-शरीर-बल और मनोबल । जव इन दोनों की संयुति होती है तब व्यक्ति जीवन में सफल हो सकता है । ऐसे व्यक्ति भी मिलते हैं जिनमें शरीर-बल ज्यादा नहीं है, पर मनोबल से वे भरे हैं । वैसे व्यक्ति जीवन में सफल होते हैं, किन्तु जिनमें मनोबल नहीं, केवल शरीर-बल है, वे ज्यादा सफल नहीं होते । शरीर-बल और मनोबल-दोनों का संयोग होने पर ही पूर्ण सफलता मिलती है । हमें दोनों पर ही विचार करना है । आयुर्वेद का दृष्टिकोण ____ भारत में आयुर्वेद की चिकित्सा-पद्धति प्रचलित रही है और इसमें अनेक नये-नये आविष्कार और प्रयोग हुए हैं । यह विश्व की प्राचीनतम चिकित्सापद्धतियों में से एक है | इसने मनुष्य के शरीर और मन दोनों पर गहराई से चिन्तन किया है । इसने शरीर-बल और मनोबल-दोनों पर प्रकाश डाला है और स्वास्थ्य के लिए दोनों की अनिवार्यता का प्रतिपादन किया है ।
हम आयुर्वेद के आधार पर शरीर-बल और मनोबल-दोनों पर विचार करें । साधना में भी दोनों बलों की आवश्यकता होती है | साधक की सफलता इन दोनों पर निर्भर करती है | शरीर बल के अभाव में एक घंटा तक आसन में नहीं बैठा जा सकता । दस मिनट के बाद ही पैरों में शून्यता आ जाती है। मनोबल न हो तो भी साधना में सफलता नहीं मिलती । शरीर-बल के बिना दस दिन तक साधना की जा सकती है, पर मनोबल के बिना एक दिन भी टिका नहीं जा सकता ।
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