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________________ ३१. शरीर, मन और मनोबल शरीर बड़ा है या मन ? ____ मैंने एक विद्यार्थी से पूछा- 'बताओ, शरीर बड़ा है या मन ? दोने में बड़ा कौन है ?' विद्यार्थी उलझन में फंस गया | जहां दो में से एक का चुनाव करना होता है, वहां समस्या खड़ी हो जाती है। विद्यार्थी मौन रहा । दो क्षण सोचने के पश्चात् वह बोला- 'बड़ा तो मन है ।' मैंने कहा- 'देख ! मन शरीर में रहता है । छोटी चीज बड़ी चीज में समाती है । मन शरीर में समा जाता है, इसलिए मन छोटा और शरीर बड़ा होना चाहिए | शरीर नहीं होगा तो मन रहेगा कहां ?' उसने कहा- 'यह बात तो ठीक है ।' मैंने कहा- 'फिर बड़ा कौन हुआ ?' उसने कहा- 'शरीर ही बड़ा हुआ ।' मैंने उसको समझाते हए कहा- 'शरीर भी बड़ा है और मन भी बड़ा है । दोनों बड़े हैं । छोटा कोई नहीं है | जहां प्रश्न है अस्तित्व का, वहां शरीर बड़ा है । यदि वह नहीं होगा तो मन भी नहीं होगा, कुछ भी नहीं होगा । जहां प्रश्न है सफलता का, वहां मन बड़ा है । शरीर है, पर मन ठीक नहीं है तो सफलता नहीं मिलेगी । अनेक व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका शरीर बलिष्ठ होता है, पर मन बहुत कमजोर होता है । जो व्यक्ति मन से दुर्बल है, उसका बलिष्ट शरीर भी क्या काम आएगा ? जो मानसिक दृष्टि से शक्तिशाली होता है, वही जीवन में सफल होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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