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________________ १०४ आमंत्रण आरोग्य को परिस्थिति है, जैसी है, वैसी ही रहेगी । उसे हम बदल ही नहीं सकते । किन्तु चेतना बहुत शक्तिशाली है | परिस्थिति को बदलती कौन है और परिस्थिति का निर्माण कौन करता है ? मनुष्य की चेतना ने ही परिस्थिति का निर्माण किया है और मनुष्य की चेतना ने ही परिस्थिति को बदला है। यह स्पष्ट हैहमारी चेतना अधिक शक्तिशाली है । प्रश्न है- हम परिवर्तन कहां से शुरू करें ? चेतना से शुरू करें । चेतना में आस्था का बीज बोना है और मुझे इसमें बहुत विश्वास है। यदि एक बच्चे में सही ढंग से आस्था उत्पन्न की जाए तो वह प्रतिकूल परिस्थिति के बावजूद अच्छे मार्ग पर चल सकता है । ऐसी घटनाएं हमारे सामने बहुत बार आती है कि माता-पिता का आचरण अनैतिकतापूर्ण है। पिता व्यापार करता है अनैतिकतापूर्ण किन्तु उसका बच्चा बिल्कुल नैतिकता में निष्ठा रखने वाला है और वह पिता को साफ-साफ कहता है- 'पिताजी, दूसरो को धोखा देकर, छलनापूर्ण व्यवहार कर आप इतना धन कमाते हैं, क्या धन को साथ में ले जाएंगे ? मुझे ऐसा धन नहीं चाहिए | आप किसलिए करते हैं ? यह अन्तर क्यों आता है ? यह चेतना का अन्तर है । प्रतिकूल परिस्थिति में भी चेतना का विकास किया जा सकता है, यह सही सत्य है । जैसी आस्था वैसा व्यक्ति हमारी यह प्रतिबद्धता नहीं होनी चाहिए कि जैसी परिस्थिति होगी, वैसा आदमी होगा । हमारा यह घोष होना चाहिए- जैसी आस्था होती है, वैसा आदमी होता है । जैसा संकल्प होता है वैसा आदमी बनता है | समाजशास्त्र का एक सूत्र बना दिया गया— जैसी परिस्थिति होती है, वैसा आदमी होत है । आदमी परिस्थिति की उपज है । मुझे लगता है- इस सूत्र ने बहुत भ्रांतिय पैदा कर दी हैं। __अध्यात्म का या भारतीय चिन्तन का सूत्र है कि जैसी आस्था, जैसा संकल्प होता है, वैसा आदमी होता है । अगर यह नहीं होता तो प्रतिकूल परिस्थिति में ईमानदार आदमी पैदा ही नहीं होता । उसे बदलने का प्रयत्न ही नहीं होता एक संकल्प लेने की जरूरत है, एक आस्था पैदा करने की जरूरत है और उससे पहले हमारी धारणाओं को स्पष्ट करने की आवश्यकता है । प्रश्न है हिंसा के संस्कार का हिंसा के निरोध में और अहिंसा के विकास में सबसे पहली बाधा हैगलत मान्यता और धारणा । दूसरी बाधा है— हिंसा का संस्कार | हिंसा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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