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________________ १०२ आमंत्रण आरोग्य को प्रति अहिंसक बनूं, इससे पहले अपने प्रति अहिंसक बनूं, इसका विश्वास होना जरूरी है। खतरा है अपने आप से हम बहुत लंबी चौड़ी बातों में न उलझें । पूरे राष्ट्र की समस्या, विश्व की समस्या, मानवजाति की समस्या ये घोष बड़े अच्छे लगते हैं, कानों को प्यारे लगते हैं, एक बार दिमाग को झंकृत भी करते हैं, किन्तु बहुत अर्थवान् नहीं होते । हमारे लिए सबसे ज्यादा अर्थवान् बात यह होगी कि हम अपते प्रति अहिंसक बनें । जो व्यक्ति अपने प्रति अहिंसक है वह दूसरे के लिए अभयंकर है और अपने आप में अभयंकर है । किसी के लिए वह खतरा पैदा नहीं करता । 'अणुबम खतरा है', यह स्वीकारते हुए भी हम इस बात को न भूलें कि वह कब खतरा होगा, नहीं कहा जा सकता । और होगा तो सारे संसार को होगा फिर चिन्ता की बात ही क्या है ? किन्तु खतरा तो अपने आप से हो रहा है। महत्त्वपूर्ण है स्वनियंत्रण __ अहिंसा के सिद्धान्त की चर्चा को जीवन विज्ञान के संदर्भ में एक नया मोड़ दिया गया-तुम दूसरे की बात छोड़ो, अपने प्रति अहिंसक बनो ; अगर तुम अपने प्रति अहिंसक बनोगे तो इसका पहला परिणाम होगा-तुम आत्महत्या से बच जाओगे । विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हो जाता है तो मरने की बात सोच लेता है | थोड़ासा पारिवारिक झंझट हो जाता है तो मरने की बात सोच लेता है । मनचाही बात नहीं होती है तो घर से भाग जाता है, आत्महत्या तक कर लेता है । यह सारा अपने पर नियंत्रण न कर सकने के कारण होता है इसीलिए स्वनियन्त्रण की बात बहुत महत्त्वपूर्ण है । हम अपने पर नियंत्रण कर सकें, अपने आवेगों पर नियन्त्रण कर सकें, यह बहुत मूल्यवान् बात है । जिसने अपने आवेगों पर नियन्त्रण करना सीख लिया, वह अपने प्रति अहिंसक बन गया | जो अपने प्रति अहिंसक बन गया, वह दूसरों के प्रति भी अहिंसक बन गया । हम केवल दूसरों के प्रति उसे अहिंसक बनाएंगे तो वह बन नहीं पाएगा । क्योंकि भीतर में तो आग लग रही है, भट्ठी जल रही है और बाहर से शांति की बात करें, यह कैसे संभव है ? पहले अपने भीतर की आग को शांत करना है, उस भट्ठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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