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________________ अणुव्रत की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता ८७ भी चाहता है और तीसरा भी चाहता है । हर आदमी चाहता है । सुख चाहने का अर्थ है सुख के साधन को चाहना । सुख के साधन को चाहना है, इसका अर्थ है, वह उनको पाना चाहता है | सबके सब लोग सुख के साधनों को पाना चाहते हैं । इस अवस्था में टकराव या संघर्ष होना अनिवार्य है । इसी अवस्था में स्पर्धा, होड़ अथवा दौड़ बढ़ती है । इसी बिन्दु पर अनैतिकता का जन्म होता है । मूल को पकड़ें अणुव्रत का दर्शन है—सुख की चाह को सीमित करना, सुविधावादी दृष्टिकोण को बदलना । सुख और सुविधा के साधनों पर अनधिकार अधिकार न करना । क्या यह सब आज के मनुष्य को मान्य है? यदि आज का आदमी समाज में भ्रष्टाचार नहीं चाहता, अनैतिकतापूर्ण व्यवहार नहीं चाहता तो उसकी मान्यता का कोई विकल्प नहीं है, वह अनिवार्य है । अनैतिकता का मूल स्रोत प्रवाहित रहे और उसकी एक धार को हम सुखाना चाहें तो उसकी सार्थकता कितनी हो सकती है ? हम पत्तों और फूलों के सिंचन पर ज्यादा विश्वास करते हैं, जड़ के अभिसिंचन की ओर कम ध्यान देते हैं इसलिए पत्र और पुष्प भी मुरझा जाते हैं | आधुनिक चीन के निर्माता माओ ने अपनी मां से एक बोधपाठ पढ़ा था | मां की रुग्णावस्था में फूलों की सार-सम्भाल का दायित्व माओ ने लिया। फूलों पर पानी सींचा । पौधे कुम्हाला गए । मां स्वस्थ होकर वहां आई । कुम्हलाए हुए पौधों को देखकर कहा—'तुमने इन पौधों को सींचा नहीं, ऐसा लगता है ।' माओ का उत्तर था- 'मैंने बहुत बुद्धिमानी से इसे सींचा है । मैंने प्रत्येक फूल को सींचा है। मां ने कहा- 'बेटा तुम समझते नहीं हो । मूल को सींचा जाता है तो फूल खिल उठते हैं और फूलों को सींचा जाता है तो सब मुरझा जाते हैं ।' माओ ने लिखा- 'इससे मैंने एक पाठ पढ़ा कि समस्या के मूल को पकड़े बिना उसे सुलझाया नहीं जा सकता ।' भ्रष्टाचार की समस्या का जो मूल है, उसे पकड़े बिना हम उसे सुलझाना चाहते हैं । यह हमारा प्रयत्न कभी सार्थक नहीं होगा । अणुव्रत का घोष संयम ही जीवन है, यह अणुव्रत का घोष है । मनुष्य को पसन्द है असंयम, खुला रहना । अपनी कामना पर, इन्द्रियों पर कौन चाहता है नियन्त्रण ? पुलिस का या दण्डशक्ति का नियन्त्रण भले हो जाए अपने आप अपने पर नियन्त्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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