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________________ प्रस्तुति प्यास जीवन की शाश्वत अपेक्षा है और जल उसका चिरकालीन समाधान। कंठ और होठों में प्रकट होने वाली यह प्यास अन्तिम प्यास नहीं है। एक प्यास इससे भी गहरे में है। वह इससे अधिक तीव्र है। वह इतनी गूढ़ है कि उसके समाधान की दिशा अभी अनावृत नहीं है। उसके समाहित होने पर मनुष्य का हर चरण तृप्ति और सुख की अनुभूति के नीलोत्पल का स्पर्श करते हुए आगे बढ़ता है और उसकी असमाहित दशा में मानवीय चरण क्लेश और क्लांति की कंटकाकीर्ण पथ की अनुभूति में विदीर्ण हो जाता है। नियति का कितना क्रूर व्यंग्य है कि मनुष्य को साधन-सामग्री उपलब्ध है, किन्तु उसकी अनुभूति का महास्रोत उपलब्ध नहीं है। वह है. शान्ति। शान्ति चेतना की नकारात्मक स्थिति नहीं है। वह मन की मूर्छा नहीं है। वह अन्तःकरण की क्रियात्मक शक्ति है। अन्तःकरण जब अन्तःकरण का स्पर्श करता है, मन जब मन में विलीन होता है और चैतन्य का दीप जब चैतन्य के स्नेह से प्रदीप्त होता है तब क्रियात्मक शक्ति प्रकट होती है। वही है मन की शान्ति। शान्ति का प्रश्न जितना युगीन है उतना ही प्राचीन है। इसके शाश्वत स्वर को श्रव्य करने का यह विनम्र प्रयत्न आपके हाथों में है। इसकी मांग भी उतनी ही है जितनी शान्ति की है। इसकी मांग उस चाह की पूर्ति का निमित्त बन सके, इसके अतिरिक्त मेरे लिए अभिलषणीय क्या हो सकता है? आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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