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________________ नई अर्थनीति के पेरामीटर दिया-अनावश्यक हिंसा न हो, आक्रामक हिंसा न हो। वह अर्थनीति बने, जो अनावश्यक और आक्रामक हिंसा को प्रोत्साहनन दे । मनुष्य की ही नहीं, जल की भी अनावश्यक हिंसा न हो, उसका भी अपव्यय न हो, वनस्पति जगत् की भी अनावश्यक हिंसा न हो। छोटे से छोटे प्राणी की भी अनावश्यक हिंसा न हो । यह बहुत अपेक्षित है। आज विचार के क्षेत्र में एक भ्रान्ति काम कर रही है। महाभारत में वेदव्यास ने लिखा है- 'न मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित्।' मनुष्य से श्रेष्ठ कोई नहीं है। महावीर ने भी कहा—'माणुसस्स हे विग्गहे खुल दुल्लहे।' किन्तु जहां यह कहना ठीक है—मनुष्य से श्रेष्ठ कोई नहीं है, वहां यह भी कह सकते हैं—मनुष्य से गलत भी कोई नहीं है। दोनों को मिलाएं तो समग्र सत्य बनेगा। मनुष्य से श्रेष्ठ और कोई नहीं है, यह कहने का अर्थ था—विकास की दृष्टि से मनुष्य से श्रेष्ठ कोई नहीं है। हमने प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में इसकी व्याख्या इस प्रकार की-'मनुष्य का नाड़ीतंत्र, ग्रंथितन्त्र इतना विकसित है, उसका रीजनिंग माइंड इतना सक्रिय है, उसकी विवेक चेतना इतनी जागृत है कि उससे श्रेष्ठ और कोई प्राणी नहीं है। यह एक सत्यांश है । इस आधार पर ही मान लिया गया कि मनुष्य के लिए सब कुछ खाद्य है। वह किसी पशु को मारे या पक्षी को। मांस भक्षण हेतु आज करोड़ों पशु-पक्षियों की वह निर्मम हत्या कर रहा है। क्या फिर भी वह श्रेष्ठ प्राणी है? श्रेष्ठता का यह जो दुरुपयोग हुआ है और इस धारणा ने मनुष्य को जितना भटकाया है, जितना निरंकुश बनाया है, शायद उतना वह कभी नहीं रहा। ऐसा लगता है कि वे मूक पशुओं की हत्याएं उससे इसका प्रतिशोध भी ले रही हैं । शारीरिक और मानसिक दृष्टि से मनुष्य निरन्तर अस्वस्थ हो, वला जा रहा है। बहुत कुछ साधनों को पाकर भी निराश्रय और शरणविहीन होता चला जा रहा है, हीन-दीन बनता चला जा रहा है। शरण नहीं है पदार्थ ___ एरिकफ्रोम ने एक सूत्र सुझाया, जिसे मैं महावीर के सूत्र का अनुवाद मानता हूं और वह यह है-नयी अर्थनीति में यह भावना जागृत करनी चाहिए-पदार्थ हमारे लिए त्राण नहीं है । एक अनुप्रेक्षा है अशरण अनुप्रेक्षा । कोई भी पदार्थ हमारे लिए शरण नहीं है । व्यवहार में तो वह शरण बनता है, किन्तु मूलत: कोई भी पदार्थ अंतिम शरण नहीं है । ठीक इसी भाषा में एरिकफ्रोम ने कहा--पदार्थ कोई त्राण नहीं है, इस भावना का विकास करना चाहिए। अब अनित्य अशरण आदि-आदि अनुप्रेक्षाओं का विकास होगा तब हमारा आन्तरिक परिवर्तन होगा, संवेगों पर नियंत्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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