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________________ अर्थशास्त्र आर्थिक समृद्धि का शास्त्र है और अर्थ का सीमाकरण शान्ति का शास्त्र। असीम आकांक्षा और शान्ति में कभी समझौता नहीं होता। मनुष्य के लिए आर्थिक संसाधन भी जरूरी है। शान्ति के मूल पर यदि आर्थिक विकास हो तो परिणामतः अशान्त मनुष्य आर्थिक समृद्धि से सुखानुभूति नहीं कर सकता। वर्तमान की अपेक्षा है-आर्थिक आवश्यकता की संपूर्ति और शान्ति-इन दोनों का समन्वय किया जाए। ऐकान्तिक दृष्टिकोण विश्व की समस्या को समाधान देने में सक्षम नहीं है, इसलिए सापेक्ष दृष्टिकोण के आधार पर आवश्यकता की संपूर्ति का अथशास्त्र और शान्ति का अर्थशास्त्र-दोनों एक-दूसरे के पूरक हों। संयम, विसर्जन, त्याग, सीमाकरण-ये शब्द आर्थिक संपन्नता के स्वप्नद्रष्टा मनुष्य को प्रिय नहीं हैं। भोग, विलासिता, सुविधा-इन शब्दों में सम्मोहक शक्ति है। जो प्रिय नहीं लगते, वे मानवता के भविष्य के लिए अत्यन्त अनिवार्य हैं। इस अनिवार्यता की अनुभूति ही महावीर और उनके सीमाकरण के सिद्धान्त को अर्थशास्त्र के सन्दर्भ में समझने की प्रेरणा देगी। Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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