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________________ १३२ महावीर का अर्थशास्त्र करता, कुम्हार का बेटा मिट्टी के बर्तन बनाता, लुहार का बेटा लोहे का काम सीखता । सब अपने-अपने काम में लगे थे । शिक्षा का स्तर बढ़ा। उसके साथ-साथ सामाजिक परिवेश में भी बदलाव आने लगा । पढ़-लिख कर लोग अपने पुश्तैनी धंधे से दूर होते गए । फिर परम्परागत धंधे में जुड़ने में संकोच होने लगा। गांव शहर की ओर भागने लगा । यह सब वर्तमान शिक्षा की देन है । सुरक्षा और सहयोग एक प्रश्न है सुरक्षा और सहयोग का । सुरक्षा कौन किसकी करता है ? इस संसार में कोई किसी की सुरक्षा नहीं कर सकता। सबकी अपनी-अपनी स्वार्थ की सुरक्षा है | बिना स्वार्थ बाप बेटे की सुरक्षा नहीं करता, बेटा बाप की सेवा नहीं करता । यह स्वार्थवृत्ति कब मिटे ? इस संसार में जब तक काम, क्रोध, लोभ, मोह रहेगा, ये बातें रहेंगी । अरबों की सम्पत्ति जिनके पास में है मरने की अवस्था में आने पर गोद लिया बेटा कहता है— बुला तो रहे हो, क्या सेठ जी सचमुच मरने की स्थिति में हैं ? मरणासन्न स्थिति में हों तो आऊं, वरना मुझे फुर्सत नहीं है । मरणासन्न सेठजी के पास कोई मक्खियां उड़ाने वाला भी नहीं है। कौन किसकी सुरक्षा करता है ? धन्य है हमारे गुरुदेवों को, जिन्होंने हमें सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त बनाया है। छोटे से छोटे और निकम्मे साधु की सेवा की जाती है । क्यों की जाती है ? गुरु को प्रसन्न करने के लिए नहीं, निर्जरा के लिए। दुष्काल की स्थिति में जब पशुधन समाप्त होने लगता है तब चारों ओर से पुकार उठती है उनकी सुरक्षा और चारे पानी के प्रबन्ध के लिए । किसलिए ? पशुओं के लिए नहीं, अपने लिए। मर जाएंगे तो दूध-दही, मक्खन कहां से मिलेगा ? खेती किससे होगी ? सारा स्वार्थ का मामला है। अकाल- दुष्काल तो कभी-कभी पड़ता है । मनुष्यों का दुष्काल तो हर समय चल रहा है । प्रतिदिन लाखों-करोड़ों लोग रोटी-पानी के लिए जूझ रहे हैं। इसके लिए वस्तुतः कोई चिन्ता नहीं हो रही है, कृत्रिम चिन्ता अवश्य हो रही है । समाधान सूत्र इस समस्या के दो ही समाधान हैं। पहला समाधान यह है, स्वयं अपने विचारों से गरीब और दरिद्र न बने। दूसरा समाधान यह है, इस बात की शिक्षा दी जाये कि अकेले आगे बढ़ने की कोशिश करोगे तो इस स्वार्थवृत्ति से तुम्हें बहुत नुकसान होगा इसलिए ऐसा मत करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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