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________________ महावीर का अर्थशास्त्र 1 मूर्च्छा कम होती जाती है । शरीर की मूर्च्छा त्यागने वाला ही अल्पवस्त्र या अवस्त्र हो सकता है। १२२ I मनुष्य चेतनावान् प्राणी है । चेतना यांत्रिक नहीं होती, इसलिए सब मनुष्य समान नहीं होते | उनमें रुचि, विचार, चिन्तन और संस्कार की भिन्नता होती है, इसलिए अचेतन जगत् की भांति चेतन जगत् के लिए कोई सार्वभौम नियम नहीं बनाया जा सकता। अपरिग्रह-प्रधान - धर्म को मानने वाले सभी अपरिग्रही हो जाते हैं - इस संभावना में सचाई नहीं लगती । अपरिग्रह सिद्धान्त को मानकर चलने वालों में से कुछ लोग अपरिग्रही निकल सकते हैं, किन्तु सब के सब अपरिग्रही हो जाएं - यह संभव नहीं है। हमारा चिन्तन इसलिए उलझता है कि हम धर्म के अनुयायी और धार्मिक को एक ही तुला पर तोलने लगते हैं। धर्म का अनुयायी वह होता है, जो धर्म को अच्छा मानकर चलता है, किन्तु उसका आचरण करने में सक्षम नहीं होता । धार्मिक वह होता है, जो धर्म के सिद्धान्तों को अच्छा भी मानता है और उसका आचरण करने में सक्षम भी होता है। जैन धर्म के अनुयायी सभी अपरिग्रही होंगे, ऐसी कल्पना अतिकल्पना होगी । 1 लोग धर्म की प्रभावना करने वाली प्रवृत्तियों में रस ले सकते हैं, धर्म के आचरण में उतना रस नहीं ले सकते । वे धर्म की व्यावहारिक भूमिका पर कार्य कर सकते हैं, किन्तु धर्म की आत्मा का स्पर्श नहीं कर सकते। यह दो ध्रुवों की दूरी मनुष्य की आंतरिक क्षमता से उत्पन्न दूरी है । इसके बीच में सिद्धान्त का सूत्र जुड़ा हुआ है, इसलिए अनुयायी वर्ग भी कुछ-कुछ संयम का अभ्यास करता है, पर वह व्रती जीवन नहीं जी पाता । वास्तविकता को हम अस्वीकार न करें। धर्म के अनुयायियों, धर्म के प्रति सम्यग् दृष्टि रखने वालों और धार्मिक या व्रती जीवन जीने वालों से एक प्रकार की अपेक्षा न रखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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