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________________ धर्म से आजीविका : इच्छा-परिमाण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। सामाजिक मनुष्य इच्छाओं और आवश्यकताओं को समाप्त कर जीवन को नहीं चला सकता और उनका विस्तार कर शांतिपूर्ण जावन नहीं जी सकता। इसलिए उन्होंने दोनों के मध्यवर्ती सिद्धान्त-इच्छा-परिमाण का प्रतिपादन किया। मौलिक भिन्नता जीवन के प्रति धर्मशास्त्र का जो दृष्टिकोण है, उससे अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण मौलिक रूप से भिन्न है। धर्मशास्त्र जीवन की व्याख्या आंतरिक चेतना के विकास के पहलू से करता है। अर्थशास्त्र जीवन की व्याख्या आर्थिक क्रियाओं के माध्यम से करता है। दोनों व्याख्याओं की पृष्ठभूमि और दृष्टिकोण एक नहीं है इसलिए धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र का और अर्थशास्त्र धर्मशास्त्र का समर्थन नहीं करता। किन्तु धर्म और धन-दोनों का सामाजिक जीवन से सम्बन्ध होता है, इसलिए जीवन के कुछ बिन्दुओं पर उनका संगम होता है, वे एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं। भगवान् महावीर ने कहा-'इच्छाओं को संतोष से जीतो।' अग्नि में ईंधन डालकर उसे बुझाया नहीं जा सकता, वैसे ही इच्छा की पूर्ति के द्वारा इच्छाओं को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। आवश्यकताओं की वृद्धि, वस्तुओं की वृद्धि, उत्पादन और श्रम की वृद्धि में योग देती है। किन्तु सुख और शांति में योग देती है-यह मान्यता भ्रांतिपूर्ण है । आवश्यकताओं की वृद्धि से जीवन का स्तर उन्नत होता है, किन्तु सुख और शांति का स्तर उन्नत होता है-यह नहीं माना जा सकता। इच्छा परिमाण की सीमा-रेखा धार्मिक मनुष्य भी सामाजिक प्राणी होता है। सामाजिक होने के कारण वह अनिवार्यता और सुविधा की कोटि की आवश्यकताओं को नहीं छोड़ पाता । महावीर ने गृहस्थ को उनके त्याग का निर्देश नहीं दिया। विलासिता कोटि की आवश्यकताएं धार्मिक को छोड़नी चाहिए-इस आधार पर ‘इच्छा-परिमाण' की सीमा-रेखा खींची जा सकती है। ___अनिवार्यता और सुविधा की कोटि की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए विलासिता कोटि की आवश्यकताओं और इच्छाओं का संयम करना आवश्यक है। इसमें आर्थिक विकास और उन्नत जीवन-स्तर की संभावनाओं का द्वार बन्द भी नहीं है तथा विलासिता के आधार पर होने वाली आर्थिक प्रगति और उन्नत जीवन-स्तर का द्वार खुला भी नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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