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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज बदलेगा, हिंसा को उत्तेजना देने वाली जो घटनाएं और निमित्त हैं, उभरेंगे और हिंसा उभरेगी । मैं नहीं मानता कि परिवेश बदलने से सब कुछ बदल जाएगा। जड़ की बात पर भी हमें जाना होगा, मूल तक जाना होगा। बाधक तत्त्वों का भी विचार करना होगा कि अहिंसा में बाधक तत्त्व कौन से हैं ? साधक और बाधक तत्त्वों का विमर्श करना होगा । एक तत्त्व है उसको सिद्ध करने वाला और एक है उसमें बाधा डालने बाला । आज हिंसा के साधक तत्त्व ज्यादा हैं। काम, क्रोध, लोभ, भय, सन्देह-ये सब हिंसा के साधक तत्त्व हैं । हिंसा का एकमात्र बाधक तत्त्व है अध्यात्म का ज्ञान, आत्मानुभूति, समानुभूति । उस पर हमारा ध्यान कम जाता है । साधक तत्त्व चारों ओर बिखरे पड़े हैं। अहिंसा के बाधक तत्त्व तो बहुत हैं । ये बाधा डालते हैं । अहिंसा का विकास होने में कठिनाई होती है। अहिंसा के बाधक तत्त्व एक घटना के द्वारा इस बात का विश्लेषण करें। एक संन्यासी ने प्रसन्न होकर एक व्यक्ति को पारसमणि दे दी। पारसमणि वह होती है जो लोहे को सोना बना देती है । संन्यासी ने कहा-छह महीने की अवधि है, जितना सोना बनाना चाहो, बना लेना। मैं ठीक छह माह के बाद आऊंगा और अपनी पारसमणि को ले जाऊंगा। एक अवसर, जिसे स्वर्ण अवसर कहा जाता है, वह सामने था। उस व्यक्ति ने सोचा, अभी तो बहुत समय है । महीने, दो महीने तो ध्यान ही नहीं दिया। फिर ध्यान दिया पर आलस्यवश छह माह निकाल दिए । संन्यासी आ गया, पूछा, कितना सोना बनाया ? उसने कहा, कुछ भी नहीं बनाया। संन्यासी ने अपनी पारसमणि ले ली और कहा कि मैं अब अवकाश नहीं दूंगा। अब तुम्हारे पास कोई लोहा हो तो लाओ मैं सोना बना दूंगा । उसने खोजा, गरीब आदमी था, पास में लोहा था ही नहीं। एक सूई पड़ी थी, लाया, पारसमणि से उसे छुआया और वह सोने की हो गई। सोना बनाने का आदमी के पास साधन था, पर बाधक तत्त्व कितने थे ? पहला बाधक तत्त्व था आलस्य, जिसके कारण सोना नहीं बना सका। दूसरा बाधक तत्त्व था लोहा जो मिल नहीं रहा था और तीसरा बाधक तत्त्व था अज्ञान या मूर्छा । अज्ञान और मूर्छा ने उसे सही निर्णय नहीं लेने दिया । तीन बाधक तत्त्व थे। जरूरी है समग्र बदलाव अहिंसा के विकास में भी बाधक तत्त्व काम कर रहे हैं । हम जानते हैं कि अहिंसा एक पारसमणि है जिसके द्वारा लोहे को सोना बनाया जा सकता है। इसके द्वारा समाज में शांति की और अमन-चैन की स्थापना की जा सकती है। जो सोने के द्वारा नहीं की जा सकती, उस शांति की स्थापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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