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________________ सार्वभौम अहिंसा केन्द्र ७३ इस संस्था को निम्नांकित की अहिंसक क्षमताओं का उपयोग करने के साथ-साथ उन में अपना योगदान करना होगा, राजनीतिक नेतृत्व, कानून, लोक प्रशासन,उद्यम, श्रम, चिकित्सा, समाज-सेवा, शिक्षा, संचार, धर्म और गैर-सरकारी नागरिकी अभियान । इसे सेना, पुलिस, क्रान्तिकारियों और अपराधियों के हिसात्मक कौशल तथा दूसरी ओर अहिंसक आन्दोलनों के अनुभवी संभागियों के अहिंसक कौशल का भी रूपान्तरण हेतु यथेष्ट उपयोग करना होगा। इसके अतिरिक्त इस संस्था को हर व्यवसाय में दैनिक जीवन की अहिंसक बुद्धि और कौशलों के प्रति जागरूक और उनका समर्थक रहना होगा। स्थानीय और सारी पृथ्वी के पर्यावरणों की बारीकी से जांच-पड़ताल करते रहते हुए तथा तदनुसार प्रक्रिया करते हुए त्रिरूपीय मस्तिष्क एक मूलभूत आध्यात्मिक वैज्ञानिक प्रश्न पूछता है और अहिंसक विश्लेषण के चतुष्कोणीय तर्क का उत्तर देना चाहता है और अहिंसा के सिद्धान्तों पर आधारित कार्य के माध्यम से अपने पर्यावरण के बदलने के लिए कार्य करता है । आधारभूत प्रश्न है, "क्या अहिंसक समाज का अस्तित्व सम्भव है ? वह सार्वभौम मानव समुदाय, जिसमें न मारना है, न मारने की धमकियां हैं, न मारने की प्रौद्योगिकी है, जिसमें न मारने का कोई सांस्कृतिक औचित्य है और न कोई सामाजिक पदार्थीय स्थितियां हैं, जिन्हें अपने आपको बनाये रखने या परिवर्तन के लिए प्राणघात करने या इसकी धमकी देने की आवश्यकता है। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए आवश्यक अहिंसक विश्लेषण के तर्क में निम्नांकित प्रश्न सम्मिलित हैं : हिंसा को जन्म कौन देता है ? अहिंसा किससे उत्पन्न होती है ? हिंसा से अहिंसा एवं अहिंसा से हिंसा में बदलाव के क्या कारण हैं ? स्थायी सुधारवादी, सुखी और न्यायप्रेमी अहिंसक समाज की, जो कभी भी हिंसा पर उतारू नहीं होगा, शर्ते क्या-क्या ___ इसके क्रियान्वयन प्रयासों में इस संस्था को समुदाय के अहिंसक सिद्धान्तों-विश्वसनीयता, सृजनशीलता, रचनात्मकता और साहस की आवश्यकता होगी। ___इस संस्था के वैचारिक स्वरूप को कार्य के तीन आधार-स्तम्भों (मूल्य, विज्ञान और नेतृत्व), क्रियान्वयन के तीन तरीकों (शोध, शिक्षा और उपयोग), पांच समस्या समाधान वचनबद्धताओं (हिंसा की समाप्ति, आर्थिक न्याय, मानवाधिकार, पर्यावरणीय शक्ति, सार्वभौम समुदाय की स्थापना) के रूप में संक्षेप में व्यक्त किया जा सकता है। उक्त वचनबद्धता के माध्यम से यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के समस्या समाधान सम्बन्धी प्रयासों में अपना समर्थन एवं योगदान दे सकती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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