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________________ अहिंसक जीवन शैली के प्रयोग और कैलनबैक रजामन्द हों तो गांधीजी खुद उन्हें अपने साथ ले जायें। कैलनबैक के हृदय में उस समय अन्य हिन्दुस्तानियों को अपने यहां आमंत्रण देने की उमंग तो नहीं थी। परन्तु गांधीजी के प्रति उनके हृदय में आदर पैदा हो गया था। उस आदर के कारण उन्होंने यह शर्त स्वीकार की और दूसरे दो-तीन साथियों को भी कैलनबैक ने निमंत्रण दिया । इस प्रकार गांधीजी ने श्री कैलनबैक के हृदय में काली चमड़ी के प्रति बैठी हुयी घिन को मिटाने का पहला कदम उठाया और श्री कैलनबैक को उसी दिन मालूम हो गया कि हिन्दुस्तानियों में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें बुद्धिशाली और संस्कारी माना जा सकता है। इस भ्रम के दूर होने पर तो श्री कैलनबैक गांधीजी के दफ्तर में जाने लगे। दोनों के बीच धर्म और आहार के विषय में अनेक चर्चायें होने लगीं। और साथ ही टॉल्स्टॉय तथा रस्किन की पुस्तकें खरीद कर वे पढ़ने लगे। इस नये स्वाध्याय से गांधीजी के आदर्शों के प्रति उन्हें अधिक आकर्षण हुआ। गांधीजी ने अपने कुटुम्ब को नेटाल भेज दिया था। कैलनबैक ने गांधीजी को अपने साथ ही रहने का आमंत्रण दिया। प्रेमभाव से दिये गये आमंत्रण को उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस समय तो गांधीजी और कैलनबैक में दोस्ती का सम्बन्ध पक्का हो चुका था। जोहानिस्बर्ग में दो-तीन मील दूर 'माउन्ट व्यू' नामकी सुन्दर जगह है, वहां जाहानिस्बर्ग में व्यवसाय करने वाले बहुत से धनवान गोरों के बंगले थे। वहीं कैलनबैक का भी बंगला था। वहां दोनों मित्रों ने साथ रहने का निश्चय किया। गांधीजी वहां रहने चले गये। परन्तु कैलनबैक का मौज-शौक उन्हें खटका । मकान घर का होने पर भी वे केवल अपनी सुख-सुविधाओं पर हर महीने लगभग १२०० रुपये खर्च कर डालते थे। साधारणतः सो सवा सौ रुपये काफी थे । इतनी ज्यादा फिजूलखर्ची गांधीजी को खटकी। गांधीजी वहां रहने लगे, उनके दूसरे ही दिन शाम को कैलनबैक ने कहा : "सैर का समय हो गया। चलो, घूमने चलें।" "जोहानिस्बर्ग में रहने वाले लोग तो यहां घूमने आते हैं, तब हम क्या वापस जोहानिसबर्ग की तरफ जायें ? हवा तो यहां की अच्छी है। और घूमना श्रम के लिये ही हो तो चलो खरपी पकड़ो। बगीचे में ही काम करेंगे तो शारीरिक श्रम भी हो जायेगा। साथ ही बगीचे का काम भी हो जायेगा।" यह कहकर गांधीजी ने कैलनबैक को बगीचे के काम में लगाया, खुद भी काम में लगे और दोनों काम करते-करते अनेक विषयों पर बातें करने लगें। इस प्रकार सवेरे और शाम दोनों आदमी बगीचे में नियमित रूप में काम में लग जाते। थोड़े दिन में श्री कैलनबैक को मालूम हो गया कि बगीचे के लिये जो दो माली रखे गये हैं उन पर खर्च करना अब फिजूल है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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