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धर्म से आजीविका : इच्छा-परिमाण
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४. आवश्यकताओं, सुख-सुविधाओं और उनकी संतुष्टि के आधारभूत धन-संग्रह की सीमा का निर्धारण ।
५. धन के प्रति उपयोगिता के दृष्टिकोण का निर्माण कर संगृहीत धन में अनासक्ति का विकास ।
६. धन के संतुष्टि-गुण को स्वीकार करते हुए आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से उसकी असारता का अनुचिन्तन ।
७. विसर्जन की क्षमता का विकास।
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