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धर्म से आजीविका : इच्छा-परिमाण
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है, किन्तु विलासिता के समर्थन का अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण उससे सर्वथा भिन्न है ।
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दूसरी भिन्नता यह है कि अर्थशास्त्र में नैतिक नियमों की अनिवार्यता स्वीकृत नहीं है । नैतिक नियमों की अवहेलना उसका उद्देश्य नहीं है, किन्तु यह उसकी प्रकृति का प्रश्न है । उसकी प्रकृति उपयोगिता है । उपयोगिता का अर्थ है - आवश्यकता को संतुष्ट करने की क्षमता । नैतिक नियम के अनुसार शराब मनुष्य के लिए लाभदायी नहीं है, इसलिए वह उपयोगी भी नहीं है । वही वस्तु उपयोगी हो सकती है जो लाभदायी हो। जो प्रवृत्तिकाल और परिणाम काल -- दोनों में सुखद न हो, वह लाभदायक नहीं हो सकती । और जो लाभदायक नहीं हो सकती, वह उपयोगी नही हो सकती । अर्थशास्त्र में उपयोगिता की परिभाषा नैतिकता की परिभाषा से भिन्न है । उसमें उपयोगिता के साथ लाभदायिकता का अनुबन्ध नहीं है । आवश्यकता को संतुष्ट करने वाली वस्तु लाभदायी न होने पर भी पर भी उपयोगी हो सकती है । मद्यपान निश्चित रूप से हानिकारक है । किन्तु मद्य में मद्यप के लिए एक उपयोगिता है । मद्यप मद्य की आवश्यकता का अनुभव करता है और मद्य उसकी आवश्यकता को संतुष्ट करती है । प्रो० रोबिन्स का मत है कि अर्थ शास्त्र में ऐसे अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है जिसका मानवीय कल्याण से दूर का भी सम्बन्ध नहीं होता । मद्य पीने से मनुष्य के कल्याण अथवा सुख में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होती, प्रत्युत कमी होने की सम्भावना है । फिर भी मद्य उद्योग का अर्थशास्त्र में अध्ययन होता है, क्योंकि मद्य-निर्माण एक आर्थिक कार्य है और अनेक व्यक्ति इस उद्योग से अपनी आजीविका कमाते हैं ।
धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण का यह अन्तर उसकी प्रकृति का अन्तर है । दोनों की प्रकृति का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है
१. नैतिक नियम मनुष्य के सामने जीवन का आदर्श प्रस्तुत करते हैं । आर्थिक नियम मानवीय आचरण के आर्थिक पहलुओं का अध्ययन करते हैं । २. नैतिक नियमों की अवहेलना करने पर मनुष्य को आत्मग्लानि होती है । आर्थिक नियमों का अतिक्रमण करने पर आत्मग्लानि नहीं होती । ३. नैतिक नियमों का पालन करने पर मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है । आर्थिक नियमों का पालन करने पर आर्थिक उन्नति होती
है ।
इस प्रकृति-भेद को समझ लेने पर धर्मशास्त्र के विधि-विधान की दूरी स्वयं बुद्धिगम्य हो जाती है । अर्थशास्त्र में नैतिकता के लिए सर्वथ अवकाश नहीं, ऐसी बात नहीं है । ईमानदारी, निष्कपटता आदि गुणों कं
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