________________
अहिंसा : व्यक्ति और समाज
पास है । समाज अथवा सरकार व्यवस्था में परिवर्तन कर सकती है किन्तु व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा को नियंत्रित करने की क्षमता उसमें नहीं है । कानून अथवा सामाजिक वैषम्य के कारण व्यक्ति को अनैतिक बनने का अवसर न मिले, व्यवस्था का काम इतना ही | बाह्य परिस्थितियां अनुकूल होने पर भी नैतिकता को पुष्ट करने के लिए आकांक्षा का संयम आवश्यक है । वह एकमात्र धर्म से ही संभव है ।
सत्य और व्यवहार
२०४
में समन्वय स्थापित हो
राजनीति और समाजनीति सत्य और व्यवहार के विघटन को स्वीकार कर सकती है किन्तु धर्म-नीति की मर्यादा में वह मान्य नहीं है । सत्यनिष्ठ व्यावहारिक रह सकता है, किन्तु व्यवहार के लिए वह सत्य की हत्या नहीं कर सकता । व्यवहार की ओट में वह किसी को धोखा नहीं दे सकता । प्रवंचनापूर्ण व्यवहार व्यक्ति के आदर्श की हत्या है। इससे व्यक्ति स्वयं धोखे में रहता है और दूसरों को धोखे में रखता है । अणुव्रत मनुष्य को प्रवचनापूर्ण व्यवहार से ऊपर उठकर सत्य के अनुगामी व्यवहार को साधने का मार्गदर्शन देता है ।
प्रामाणिक कहना संभव है ?
मनुष्य के लिए असम्भव क्या है ? वह सब कुछ कर सकता है किन्तु करता तभी है जब उसका अंतःकरण वैसा करने के लिए तैयार हो । व्यवसाय में प्रामाणिक रहने के लिए व्यक्ति को संग्रह की भावना का विसर्जन करना होता है । व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर मानवीय दृष्टिकोण से सोचता है और अपनी वस्तु का भोग मैं ही करूं, इन विचारों में संशोधन कर लेता है । इतना होने के बाद अर्थ के प्रति पैदा होने वाला आकर्षण कम हो जाता है। और आकर्षण कम होने से अनैतिक प्रवृत्तियों का बहिष्कार सहज वन जाता
है ।
इस युग में भी अनेक अणुव्रती भाइयों के जीवन-प्रसंग मुझे ज्ञात हैं । उन्होंने कठिनाइयां झेलकर भी अणुव्रत के आदर्शो पर चलने का प्रयास किया और व्यवसाय क्षेत्र में नया कीर्तिमान् स्थापित किया ।
सुगनचन्दजी आंचलिया का जीवन अणुव्रत के आदर्शों के अनुकूल और व्यवसाय बुद्धि का एक ज्वलंत उदाहरण था । उन्होंने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा- 'अणुव्रती होने के बाद मैंने अपने पारिवारिक जनों से अपने फर्म में लेक न करने के लिए विनम्र अनुरोध किया और ब्लैक होने की स्थिति में सम्मिलित रह सकने में असमर्थता प्रकट की । मेरे बड़े भाई श्री रामकुमार आंचलिया ने कहा- 'तुम्हारे मन में यदि धन की लालसा नहीं है तो हमें धन को साथ लेकर थोड़े ही जाना है । हम ब्लैक किसलिए करेंगे ?'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org