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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
करना - वे दोनों काम जरूरी हैं । अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का ध्यान जितना वर्तमान समस्या को सुलझाने के प्रति है उतना मूल स्रोत के परिष्कार के प्रति नहीं है । हमारी दृष्टि में अहिंसा के विकास में यह बहुत बड़ी बाधा है ।
शस्त्रीकरण, युद्ध, निरस्त्रीकरण, युद्धवर्जना, शिक्षा, अर्थव्यवस्था ये सब सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं । जनता से इनका कोई संबंध नहीं है । सत्ता की कुर्सी पर बैठे लोग अहिंसा की बात को ध्यान से सुनें, ऐसा कम संभव है । हमें अपनी बात, अहिंसा की बात जनता तक पहुंचानी है । उस जनता तक जो शस्त्रीकरण या निःशस्त्रीकरण का निर्णय तो नहीं ले सकती किन्तु शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण का निर्णय लेने वालों के भाग्य का निर्णय कर सकती है । इसके लिए गहन आस्था, तीव्र अध्यवसाय और सतत साधना की जरूरत है । हमें विश्वास है कि अहिंसा के वाले व्यक्ति में इन सब का उदय होगा ।
क्षेत्र में काम करने
विश्व शांति और अहिंसा
आज हम बहुत निकट आ गए हैं। दूरियां कम हो गई हैं। पहले हम व्यक्ति की बात सोचते थे, फिर समाज की । आजकल हम विश्व की बात सोचते हैं । यह क्रमिक विकास व्यक्ति से समाज और समाज से विश्व बहुत महत्त्वपूर्ण है । हम यथार्थ को न भुलाएं। चेतना का केन्द्र भी व्यक्ति है । व्यक्ति की चेतना का केन्द्र भी व्यक्ति है और सामूहिक चेतना का केन्द्र भी व्यक्ति है । व्यक्ति की चेतना का परिष्कार किए बिना विश्व शांति का सपना पूर्ण नहीं हो सकता । शांति की बात व्यवस्था के साथ चले तो व्यक्ति को गौण किया जा सकता है । व्यवस्था का कमजोर या शक्तिशाली पहलू है— नियंत्रण | उसके बिना व्यवस्था नहीं चलती । नियंत्रण के साथ शांति की पौध पनप नहीं सकती । चाहे पहले करें और चाहे अन्त में, व्यक्ति व्यक्ति में सामूहिक चेतना को जगाना ही विश्व शान्ति का मूल मंत्र है । इस सामूहिक चेतना का पुराना नाम समता की चेतना है ।
नियंत्रण की अवधारणा के साथ सैनिक शासक और तानाशाह पनपते रहे हैं । हम राजतंत्र से लोकतंत्र तक पहुंचे हैं । इस विजययात्रा का मूल्य कम नहीं है । इससे अगली यात्रा शान्तितंत्र की होनी चाहिए। लोकतंत्र में जो शासक आते हैं उनमें अहिंसा के प्रति आस्था जरूरी नहीं है । यद्यपि लोकतंत्र और अहिंसा में निकट का संबंध है, फिर भी लोकतंत्रीय शासन को भी तानाशाही के आस- पास पहुंचा दिया गया है। शांतितंत्र की प्रणाली लोकतंत्र से भिन्न नहीं होगी । किन्तु उसका शासक अहिंसा में आस्था रखने वाला होयह अनिवार्य शर्त होगी । अब राजनीतिक प्रणाली का प्रयाण लोकतंत्र से
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