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________________ ११४ अहिंसा : व्यक्ति और समाज और कायिक तीनों प्रकार की होती है । जब तक यह मन के धरातल पर रहती है, व्यवहार दूषित नहीं होता । वचन का विषय बनते ही यह सद्भाव का लोप कर देती है। सद्भाव खण्डित होने के बाद अनेक प्रकार से भय और आशंकाएं जन्म ले लेती हैं । भयभीत व्यक्ति सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को भूल जाता है। उसे चारों ओर से आक्रमण की संभावना बेचैन बना देती है । इस स्थिति में वह न तो किसी का विश्वास करता है और न किसी के साथ रहने में अपने अस्तित्व की सुरक्षा देखता है। अहिंसा के अश्व पर आरूढ़ होने के लिए अभय की लगाम थामनी ही होगी अन्यथा अहिंसा की बात केवल सिद्धांत का विषय बनकर रह जाती है । एक समय था जब मनुष्य युद्ध की संस्कृति से परिचित नहीं था। उसकी आकांक्षाएं सीमित थीं । सीमित आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उसे दौड़धूप नहीं करनी पड़ती थी। जो कुछ मिल जाता, उसी से जीवन-यापन हो जाता था। उस समय प्रत्येक व्यक्ति स्वलाभ में संतुष्ट रहता था। स्वलाभ में असन्तोष के अनुभव ने मनुष्य के मन में पदार्थ के प्रति आकर्षण पैदा किया। इस आकर्षण ने परायी वस्तु हड़पने की मनोवृत्ति जगायी। जब वह सहज में नहीं मिली तो मनुष्य आक्रान्ता बन गया । वह जोर-जबरदस्ती से दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार स्थापित करने लगा । आकांक्षा का जगत् बहुत बड़ा है । खान-पान की छोटी-से-छोटी वस्तु का उसके साथ सम्बन्ध है तो धरती पर एकछत्र साम्राज्य करने की भावना भी उससे जुड़ी हुई है। पर का स्व हड़पने के लिए मनुष्य ने अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार किया । आदिम युग के अस्त्र पत्थर के होते थे। उनमें कुछ सुधार हुआ तो लोहा, लकड़ी आदि का उपयोग होने लगा। भाला, बरछी, तीर, तलवार आदि भी आक्रान्ता संस्कृति के ही अंग हैं। ये सभी साधन उस समय अकिंचित्कर हो गए जब मनुष्य ने अणु की शक्ति को पहचाना । अणुशक्ति का उपयोग निर्माण के कार्य में भी हो सकता है पर हिंसा के संस्कारों की सक्रियता में निर्माण की बात गौण हो जाती है और ध्वंस की बात प्रमुख बन जाती है । जापान के दो बड़े शहरों-हिरोशिमा और नागासाकी का ध्वंस द्वितीय महायुद्ध में सक्रिय हिंसक चेतना का प्रतीक है। विगत कुछ समय से विश्व की महाशक्तियां अन्तरिक्ष युद्ध की तैयारियों में संलग्न थीं। इन तैयारियों का हेतु भी भय या आशंका के अतिरिक्त और क्या हो सकता है ? रूस और अमेरिका के बीच मध्यम दूरी वाले प्रक्षेपक अणु-अस्त्रों के परिसीमन का समझौता हिंसक वातावरण में उठा हुआ एक छोटा-सा अहिंसक कदम था। इस कदम का गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ। अब आगामी शिखर सम्मेलन में सब प्रकार के आणविक अस्त्रों को समाप्त कर देने वाली घोषणा की प्रतीक्षा है। ऐसी घोषणा और तत्परता के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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