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________________ ८० अहिंसा के अछूते पहलु. अशांति स्वाभाविक है। प्रातःकाल ही उनके सामने प्रश्न आता है कि रोटी कहां से आएगी ? नाश्ता कहां से आएगा ? बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे ? रोटी की समस्या अशांति का कारण बन जाती है। जिन लोगों के पास अर्थ की अधिकता है, वे भी अशांत है । प्राप्त धन की कैसे सुरक्षा की जाए, उसे कैसे बचाया जाए ? कैसे रखा जाए ? करों से कैसे बचाया जाए ? आज किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उसे कहां रखा जाए ? ये प्रश्न मनुष्य को निरंतर अशांत बनाए रखते हैं । आज वकीलों और आर्थिक सलाहकारों की इतनी भीड़ लग गई, चार्टेड एकाउन्टेंटों की इतनी लम्बी कतार खड़ी हो गई, फिर भी अर्थ को पूरा बचाने की बात शायद उसकी समझ में नहीं आती। पहली समस्या है आर्थिक आर्थिक जीवन का दसवां पहल है-युद्ध । आर्थिक प्रणाली के आधार पर युद्ध की समस्या भी सामने आती है। हम विश्व शांति, निःशस्त्रीकरण, युद्धवर्जन इन सारे पहलुओं पर चिंतन करें तो सबसे पहले आर्थिक जीवन की बात आएगी। युद्धवर्जन, निःशस्त्रीकरण, शस्त्रीकरण-इन सबका स्थान दूसरा या तीसरा होगा। पहली बात होगी-आर्थिक समस्या को कैसे सुलझाया जा सकता है ? उसका समीकरण कैसे किया जा सकता है ? यह एक बहुत जटिल प्रश्न है। आर्थिक जीवन के ये दस पहल हैं। इन दस शब्दों की परिधि में घूम रहा है आर्थिक जीवन । समस्या का एक पहल है कि समस्या तो है पर उसका समाधान क्या हो सकता है ? आर्थिक समस्या के समाधान के लिए साम्यवाद की प्रणाली का सूत्रपात हुआ । साम्यवादी प्रणाली ने इस आशा को जन्म दिया कि गरीबी मिट जाएगी, जीवन हल्का हो जाएगा। किन्तु ऐसा लगता है उससे गरीबी मिटी नहीं, समस्या का बोझ हल्का नहीं हुआ। ____डाक्टर के पास रोगी आया। वह एक सप्ताह से दवा ले रहा था । डाक्टर ने उसे देखा और बोला-भाई ! मैंने इतनी दवाइयां दी हैं । लगता है अब तुम्हारी तबियत हल्की हो गई है । रोगी ने कहा-डॉक्टर साहब ! तबियत तो हल्की नहीं हुई है, जेब अवश्य हल्की हो गई है। सामाधान का सूत्र : सापेक्षता आर्थिक जीवन से दिमाग पर एक भारीपन, एक बोझ आ गया है। वह हल्का नहीं हो रहा है। प्रश्न है उसमें हल्कापन कैसे आ सकता है ? इस आर्थिक समस्या का समाधान क्या है ? समाधान की चर्चा के संदर्भ में एक शब्द सामने आता है सापेक्षता । अनेकान्त का एक सूत्र है—सापेक्षता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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