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________________ आथिक जीवन और सापक्षत। ७६ करते हैं और उसे विरोधी सरकार तक, संबद्ध व्यक्ति तक पहुंचा देते हैं ताकि लाखों-करोड़ों रुपए एक साथ मिल जाए । हेरोइन आदि मादक वस्तुओं का धंधा भी बिना श्रम किए पैसा पाने का एक उपाय है। बिना श्रम किए सीधा धन प्राप्त करने की इस मनोवृत्ति से अपराध को एक नया आयाम मिला है। ___ आज मनुष्य की आवश्यकताएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। उनकी कोई सीमारेखा नहीं है । यह अति आवश्यकता भी अपराध का एक कारण है। हिसा क्यों ? आर्थिक जीवन का आठवां पहलू है-हिंसा। परिग्रह और हिंसा को अलग नहीं किया जा सकता। ये एक ही सिक्के के दो पहल हैं । जैन आगमों में प्रश्न व्याकरण, आचारांग, सूत्रकृतांग आदि में इस पर बहुत विमर्श हुआ है कि आदमी हिंसा क्यों करता है ? इस संदर्भ में "वह पाने के लिए" वह पाने के लिए" इस शब्द का बार-बार प्रयोग हुआ है । आदमी हड्डियों के लिए हिंसा करता है, सींगों के लिए हिंसा करता है, दांतों के लिए हिंसा करता है । पहले मैं सोचता था कि हिंसा के लिए इतने नाम क्यों गिनाए गए, इतना विस्तार क्यों दिया गया ? किन्तु आज जब हिंसा के कारणों की मीमांसा सामने आती है, तब यह विस्तार बहुत सार्थक लगता है। परिग्रह के लिए हिंसा ___ आज गैंडा जाति समाप्त हो रही है। सींग के लिए गैंडों को मारा जा रहा है। गैंडों का सींग बहत कीमती है। उसके बदले में अपार विदेशी मुद्रा मिल जाती है । गैंडे के मारे जाने पर प्रतिबंध है फिर भी उनकी हत्या के प्रयत्न निरंतर चल रहे हैं । आज कस्तूरी-मृग दुर्लभ हो रहे हैं । कस्तूरी के लिए उन्हें मारा जा रहा है । हाथी दांतों के लिए मारे जा रहे हैं । बहुत सारे बाघ और चीते खाल के लिए मारे जा रहे हैं। यह व्यवसाय बहुत व्यापक बन गया है । आर्थिक पक्ष को सुदृढ बनाने के लिए ये सारे अपराध हो रहे परिग्रह हिंसा का मुख्य हेतु है । 'हिंसा परिग्रह के लिए है' या 'हिंसा हिंसा के लिए है, यदि इस प्रश्न की समीक्षा की जाए तो "हिंसा हिंसा के लिए" इसे कम अंक मिलेंगे और "हिंसा परिग्रह के लिए" इसे अधिक अंक मिलेंगे। अशांति : अभाव और अतिभाव __ आर्थिक जीवन का नौवां पहल है-अशांति । आज की जागतिक समस्या है अशांति । अर्थ का अभाव है तो भी अशांति और अर्थ है तो भी अशांति । दोनों ओर से अशांति बढ़ रही है। जिनके पास अर्थ नहीं है, उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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