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________________ अहिंसा और अभय ५६ अभय के बिना मूर्छा का विलय नहीं हम मूल सचाई को पकड़ें। मूल सत्य क्या है ? ध्रुव सत्य क्या है ? भय है हमारी मूर्छा । अभय है हमारी अमूर्छा । इसका एक समीकरण करें तो यह रूप बनेगा कि मूर्छा, भय और हिंसा । अमूर्छा, अभय और अहिंसा। यह समीकरण होगा कि मूर्छा है। उसने भय को जन्म दिया है और हिंसा को जन्म दिया है । अमूर्छा है अभय । अभय आया और अहिंसा आई । हम अहिंसा की बात करते हैं। किन्तु जीवन में अहिंसा तब तक नहीं आ सकती जब तक कि अभय नहीं आ जाए। तब तक अभय नहीं आ सकता जब तक कि मूर्छा टूट न जाए। हमें प्रहार किस पर करना है ? हिंसा पर प्रहार करना तीसरे नम्बर की बात है। भय पर प्रहार करना दूसरे नम्बर की बात है । पहले नम्बर की बात है मूर्छा पर प्रहार करना। यदि आप कितनी ही अहिंसा की बात करें, हिंसा पर प्रहार करने की बात करें, भय के वातावरण को मिटाने की बात करें, किन्तु यदि मूर्छा है तो भय जन्मेगा। उसे रोका नहीं जा सकता। भय हिंसा है हिंसा एक परिणाम है। भय का परिणाम है हिंसा । जिस व्यक्ति ने लाठी का आविष्कार किया, जिस व्यक्ति ने पत्थर का शस्त्र बनाया, वह डरा हुआ आदमी था। उसने बनाया। यदि अभय होता तो न लाठी बनाने की जरूरत होती और न पत्थर का शस्त्र बनाने की जरूरत होती और न उसे अणुशस्त्रों तक पहुंचने की जरूरत होती । यह सब भय के कारण हो रहा हैं । एक छोटा राष्ट्र बड़े राष्ट्र से डरता है। बड़ा राष्ट्र भी छोटे राष्ट्र से डरता है कि कहीं अणुबम न बना ले। और छोटा राष्ट्र डरता है कि बड़ा राष्ट्र हम पर कहीं हावी न हो जाए, हमला न कर दे। सभी एक दूसरे से भयभीत हैं। शेर की मां ने शेर से कहा, बेटा ! एक बात का ध्यान रखना। और किसी से तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है, तुम जंगल के राजा हो। पर काले सिर वाले से हमेशा डरना। काला माथा हो उससे डरना, आदमी से डरना । वह बड़ा खतरनाक होता है । एक दिन ऐसा हुआ कि एक लकड़हारा लकड़ियां काटने जा रहा था। सामने से शेर आया था। आदमी ने शेर को देखा और शेर ने आदमी को देखा तो इधर आदमी दौड़ रहा है और उधर शेर दौड़ रहा है। बड़ी अजीब बात है। उसने सोचा - बात क्या है ? वह थोड़ा रुका और शेर भी रुका। शेर ने आदमी से पूछा-तुम क्यों दौड़े ? आदमी ने बताया, मैं तो इसलिए दौड़ा कि तुम मुझे मार डालोगे । आदमी ने शेर से पूछा- तुम क्यों दौड़े ? शेर ने बताया, मेरी मां ने कहा था कि तुम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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