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________________ १८६ अहिंसा के अछूते पहलु सम्यक् दर्शन हो जाता है। हमारे भीतर न जाने कितनी कामनाएं हैं। मनुष्य के भीतर, हर प्राणी के भीतर विभिन्न मौलिक मनोवृत्तियां हैं, कामनाएं हैं। उन कामनाओं का सामना करना होता है। जब कामना की तरंगे जागती हैं, आदमी कुछ नहीं कर पाता। जब वह इनके अधीन हो जाता है तब जीवन बहुत गड़बड़ा जाता है। हमारे भीतर कामनाओं का एक संसार है । पूरा समुद्र लहरा रहा है। अर्थ : अभाव और प्रभाव - दूसरा तत्त्व है अर्थ का। जीवन की यात्रा चलाने के लिए अर्थ की जरूरत है । अर्थ का जगत् बड़ा है। अर्थ के बारे में हमारा दृष्टिकोण सही नहीं है। पूरे समाज का अध्ययन करें तो दो स्थितियां हमारे सामने आती हैं । एक स्थिति है अर्थ का अभाव । दूसरी स्थिति है-अर्थ का प्रभाव । समाज का बहुत बड़ा ऐसा वर्ग है जहां अर्थ का अभाव है और समाज का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है, जहां अर्थ का प्रभाव है। दोनों स्थितियां अच्छी नहीं हैं । जीवन यात्रा के लिए अर्थ का अभाव होना भी अच्छा नहीं है और अर्थ का प्रभाव होना भी अच्छा नहीं है। दोनों अच्छे नहीं हैं । जहां अर्थ का अभाव होता है, गरीबी होती है। जीवन का चलना मुश्किल होता है और आदमी बहुत दुःख से दिन गुजारता है । अर्थ का प्रभाव होता है, वहां अति विलासिता, अति कामुकता, प्रदर्शन-ये सारी घटनाएं होती हैं। आज भी बहुत सारी बीमारियां शारीरिक नहीं, मानसिक बीमारियां हैं । ये सब अर्थ के प्रभाव के कारण होती हैं । परिणाम अर्थ के प्रभाव का आज के संसार की सबसे कठिन समस्या यह है कि सर्वत्र अर्थ का प्रभाव है । सुविधावाद उसी से उपजा है । अर्थ का इतना प्रभाव हो गया कि व्यक्ति बिलकुल सुविधावादी बन गया । वह सुविधा में जीना चाहता है । मैं नहीं समझता कि फ्रीज कोई जरूरी है। पर फ्रीज आज हर घर की अनिवार्य आवश्यकता बन गया। आज फ्रीज के बिना काम ही नहीं चलता। यह अर्थ का प्रभाव है मन पर। हमारे भोजन का नियम है-ऐसी वस्तु खानी चाहिए जो शरीर के तापमान के बराबर हो । शरीर के तापमान से ज्यादा ठंडा खाना भी हानिकारक है और ज्यादा गरम खाना भी हानिकारक है। जितना शरीर का तापमान है, उसी तापमान की वस्तु खाने-पीने की होती है। पर आज अत्यंत ठंडे के बिना तो काम ही नहीं चलता। एक भाई बता रहा था-आजकल के भोजों में भोजन के पश्चात् आइस्क्रीम दी जाती है और सारे लोग बड़े चाव से उसे खाते हैं। भोज में आइस्क्रीम न हो तो वह कैसा भोज ? मैं नहीं समझ पाया, यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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