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________________ १७२ अहिंसा के अछूते पहलु मानसिक संवेदन होना, दूसरा दुःख है। यह दोहरा दुःख उसे भोगना पड़ता है, जिसने इस सचाई को जीना प्रारंभ नहीं किया है कि संसार में कोई किसी का त्राण नहीं है, शरण नहीं है। सर्वत्र अत्राण और अशरण ही अशरण है। शरण कौन ? जैन परंपरा में चार शरणों की बात स्वीकृत हैअरहंते सरणं पवज्जामि-मैं अर्हत् की शरण में जाता हूं। सिद्धे सरणं पवज्जामि---मैं सिद्ध की शरण में जाता हूं। साहू सरणं पवज्जामि-मैं साधु की शरण में जाता हूं। केवलि पण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि-मैं धर्म की शरण में जाता हूं। अर्हत् यानी वीतरागता की शरण, सिद्ध अर्थात् मुक्तात्मा की शरण, साधु अर्थात् साधना की शरण और धर्म अर्थात् सत्य की शरण । वास्तव में ये चार ही शरण हैं, दूसरा कोई शरण बन नहीं सकता। इसमें न लड़के के शरण की बात है, न धन-वैभव के शरण की बात है और न पिता या पति के शरण की बात है। इसमें केवल वे शरण बने हैं जिनके पास कुछ भी नहीं है। एक शब्द में कहा जा सकता है-शरण है आकिंचन्य की। यह एक संचाई है-जिनके पास बहुत है, वे शरण नहीं दे सकते। जब विपरीत परिस्थिति आती है तब सब मुंह मोड़ लेते हैं। उस समय शरण वे ही बन सकते हैं जो अकिंचन हैं, जिनके पास कुछ भी नहीं है। त्राण देती है शरण चतुष्टयी - आम्रपाली एक गणिका थी। वह रूप-सौन्दर्य की मूर्ति थी। उसको पाने के लिए वैशाली के राजा, महाराजा, सामंत, सेठ-सभी लालायित रहते थे । एक बार महात्मा बुद्ध वहां आए। उन्हें आम्रपाली के पास जाने के लिए कहा गया। बुद्ध बोले-अभी नहीं, जब जरूरत होगी तब अवश्य जाऊंगा । काल बीता। आम्रपाली के शरीर पर बुढ़ापा उतरने लगा। रूपसौन्दर्य मुरझा गया। बीमार हो गई। कोई पास में नहीं आ रहा है। सभी ने उसको छिटका दिया। बुद्ध उस नगरी में आए । आम्रपाली की अवस्था ज्ञात हुई । वे उसके पास गए। आम्रपाली बोली-भंते ! बहुत विलंब से आए। उस समय आप आते तो मेरे रूप-लावण्य पर मुग्ध हो जाते । आज वैसी स्थिति नहीं है। बुद्ध बोले-देवी ! वह मेरे लिए असमय था तुम्हारे पास आने का। उचित समय यही है, क्योंकि जब कोई नहीं होता है तब साधु-संत ही शरण होते हैं । आज तुझे मेरी आवश्यकता है, धर्म की जरूरत है। ऐसी स्थिति में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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