________________
२०. सत्य और मानसिक शांति
एक भाई ने पूछा, विश्व शांति कैसे हो सकती है ? मैंने कहा, तुम्हारा मन तो शांत है ? वह बोला, मेरा मन शांत नहीं है । मैंने कहा, विश्व शांति की बात करने से पूर्व अपने मन को शांत करने की बात सोचो । विश्वशांति की बात बहुत बड़ी बात है । यह तथ्य है कि विश्व में अशांति उन लोगों नेपैदा की है या कर रखी है, जिनका स्वयं का मन अशांत है । जिस व्यक्ति का मन शांत होता है, वह विश्व में अशांति पैदा नहीं कर सकता । जितने लोग विश्व शांति के प्रतिकूल चल रहे हैं और विश्व में अशांति पैदा कर रहे हैं, उनका मन शांत और संतुलित नहीं है । यदि मन की शांति घटित होती है तो विश्व शांति के लिए अलग से प्रयत्न नहीं करना पड़ता । यदि मानसिक शांति नहीं है और विश्व शांति का प्रयत्न चलता है तो वह सफल नहीं हो
सकता ।
प्रश्न है शांति का
प्रश्न है मन की शांति कैसे संभव है ? अशांति के अनेक कारण हैं । उनमें बड़ा कारण है असत्य । व्यक्ति में सत्य निष्ठा नहीं है । वह सत्य को जानता नहीं है, इसलिए अशांत हैं । जो सचाई को जान लेता है, उसके मन में अशांति पैदा नहीं होती । यदि कभी होती है तो भी क्षणभर के लिए। वह अधिक टिकती नहीं । जैसे पहाड़ पर वर्षा हुआ पानी ऊपर अधिक समय तक नहीं ठहरता, नीचे आ जाता है, वैसे ही परिस्थिति के चक्र में अशांति की बात कभी-कभी आ जाती है, किंतु जिस व्यक्ति का मन सत्य से जुड़ा हुआ है, जिसके मन में सत्य के प्रति गहरी आस्था है, वहां अशांति टिक नहीं पाती । आती है और चली जाती है ।
मानसिक अशान्ति का कारण
आदमी परिस्थिति और मनःस्थिति- दोनों के बीच जीता है । बाहर के जगत् में परिस्थिति का सामना करता है और भीतर के जगत् में मनःस्थिति का । अनुकूल परिस्थिति में आदमी ज्यों-त्यों संतुलन रख लेता है, पर प्रतिकूल परिस्थिति में वह विचलित हो जाता है, संतुलन खो देता है, घुटने टेक देता है । यह सारा मनःस्थिति के कारण होता है । यह भी संभव है कि विपरीत परिस्थिति में भी मनःस्थिति शांत, स्वस्थ और संतुलित रह जाए । अत्यन्त विषम परिस्थिति में भी मन शांत और स्वस्थ रह सकता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org