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________________ भावात्मक स्वास्थ्य १११ का मतलब है-अशुभयोग की प्रवृत्ति न करना और शुभ योग की प्रवृत्ति करना। सावधयोग का प्रत्याख्यान यानी अशुभ योग की प्रवृत्ति का प्रत्याख्यान । जब अशुभ प्रवृत्ति का प्रत्याख्यान होगा तो आदमी सहज ही शुभ स्वभाव के निर्माण में चला जाएगा। सामायिक को स्वभाव निर्माण की प्रक्रिया माना जा सकता है। सदाशिव बनने का फार्मूला तंत्र-शास्त्र और शैव-दर्शन का शब्द है-सदाशिव । वह कभी अशिव नहीं होता। सदाशिव रहने का एक फार्मूला है सामायिक । प्रत्येक व्यक्ति संकल्प करें कि मैं ५० मिनट के लिए अशुभ प्रवृत्ति से निवृत्त होता हूं और शुभ प्रवृत्ति करता हूं। इसका अर्थ है वह पवित्र स्वभाव को और अधिक मजबूती देता है । इसका परिणाम होगा-व्यक्ति का मन उन संवेगों के प्रति कभी न झुकेगा, कभी न जाएगा, जो संवेग विषाद पैदा करने वाले हैं। जब संवेग जागते हैं, बड़ी विचित्र स्थिति हो जाती है । संवेग में व्यक्ति का स्वभाव भी कैसा ही हो जाता है और व्यवहार भी कैसा ही बन जाता है। संवेग से जुड़ा है व्यवहार ___ एक कर्मचारी जल्दी घर पहुंचा। पत्नी ने कहा-अभी तो दो बजे हैं । तुम्हारे अवकाश का समय पांच बजे होता है। तीन घंटा पहले कैसे आ गए ? वह बोला—मैंने कोई काम किया था और मेरा बॉस बिगड़ गया। बॉस ने गुस्से में कहा-जाओ! तुम जहन्नुम में, नर्क में चले जाओ। उसने ऐसा कहा तो मैं घर पर आ गया। बॉस ने जहन्नुम में भेजा और उसने अपने घर को जहन्नुम बना लिया। जब आदमी गुस्से में होता है, उसका सारा चितन और सारा व्यवहार बदल जाता है। वह चिड़चिड़ा हो जाता है। स्वभाव भी विचित्र प्रकार का होने लग जाता है। भावनात्मक स्वास्थ्य का एक सूत्र है-हम अपने संवेगों के प्रति जागरूक रहें। कौन सा संवेग बार-बार उद्दीप्त हो रहा है ? उस संवेग का मेरे ऊपर क्या प्रभाव होगा? यदि संवेग के प्रति जागरूकता की बात आती है तो स्वभाव को बदलने में, भावनात्मक स्वास्थ्य को अच्छा बनाने में सुविधा हो जाती है। पाचनक्रिया और स्वभाव स्वभाव के साथ संबंध है पाचनक्रिया का। जिस व्यक्ति की पाचनक्रिया ठीक नहीं होती, वह भावनात्मक स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रख सकता। सीधा संबंध लगता है-पाचनक्रिया ठीक नहीं है तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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