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________________ अहिंसा के अछूते पहलु ११० करोगे । उसका अर्थ होगा- तुम्हारे संवेग अच्छे रहेंगे, तुम्हारी भावना अच्छी रहेगी। कोई भी बुरा संवेग तुम्हारे पास नहीं आएगा । तुम्हारे स्वभाव का बुरा निर्माण नहीं होगा । जिस भाव में जीओगे वैसे बनोगे । एक पवित्र भाव रहता है तो स्वभाव पवित्र बन जाता है, अपने आप बुरा स्वभाव बदल जाता है । जो व्यक्ति अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत आनंद - इस चतुष्टयी की स्मृति में जीता है उसका स्वभाव इतना बढ़िया होता है कि वह अपने लिए और दूसरों के लिए कोई भी खतरनाक काम नहीं कर सकता, समस्या पैदा करने वाला काम नहीं कर सकता । जो आनंद में जी रहा है वह दूसरे को सताएगा नहीं, दुःख नहीं देगा और न स्वयं ही दुःखी बनेगा । वह अपनी चेतना में जिएगा और जब वह चेतना में जिएगा तो कोई भी मूर्खतापूर्ण काम नहीं करेगा | स्वभाव निर्माण की प्रक्रिया सत्, चित् और आनंद- ये तीन बहुत प्रचलित शब्द हैं । जो सत् में जीता है, चित् में जीता है और आनंद में जीता है, उनकी अनुभूति रखता है, बार बार स्मृति रखता है, वह अपने ऐसे स्वभाव का निर्माण करेगा, जिस स्वभाव से सत् निकलेगा, चित् निकलेगा और आनंद निकलेगा । उसमें से असत्, अचित् और दुःख नहीं निकलेगा और दूसरों के लिए भी वह खतरनाक नहीं बनेगा । बहुत बड़ा एक सूत्र दिया गया था पवित्र स्मृति का - 'शिवसंकल्पमस्तु मे मनः' मेरा मन पवित्र संकल्प वाला बने । मेरा मन निरंतर पवित्र बना रहे। जैन साहित्य का एक पारिभाषिक शब्द है - ज्यादा से ज्यादा शुभ योग बना रहे । यह बहुत प्रचलित शब्द है कि अशुभ योग की प्रवृत्ति न हो, शुभ योग की प्रवृत्ति हो । मनोविज्ञान के संदर्भ में यदि इस सूत्र की व्याख्या करें तो स्वभाव निर्माण की दृष्टि से यह बहुत महत्त्वपूर्ण है । शुभ योग की प्रवृत्ति होगी, अशुभ योग की प्रवृत्ति नहीं होगी - इसका अर्थ है - पवित्र भावों में हमारा जीवन बीतेगा, हमारे क्षण बीतेंगे, हमारा समय बीतेगा । पवित्र स्वभाव अपने आप बनता रहेगा । हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य, क्रोध, अभिमान, माया -- ये सब अशुभ योग हैं। यदि इन अशुभ योगों में प्रवृत्ति होगी तो स्वभाव भी वैसा ही बनता चला जाएगा । इसलिए सूत्र दिया गया कि अशुभ योग की प्रवृत्ति न हो, शुभ योग की प्रवृत्ति हो । सामायिक : स्वभाव निर्माण का संकल्प जैन श्रावक सामायिक करते हैं । सामायिक करने का अर्थ समता की साधना कहा गया है । हम क्यों नहीं मानें कि सामायिक करने का अर्थ है— स्वभाव निर्माण का संकल्प, संवेगों को पवित्र बनाने का संकल्प | सामायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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