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________________ मानसिक स्वास्थ्य १०३ कार्य करना पड़ा । ये तर्क व्यक्ति को आत्म निरीक्षण से दूर ले जाते हैं। परदर्शन से पैदा होने वाले ये तर्क व्यक्ति की आदतों में स्वस्थ मोड़ नहीं ला सकते। इनसे व्यक्ति की बीमार मानसिक दशा ही अभिव्यक्त होती है। जो व्यक्ति मानसिक दृष्टि से बीमार होता है, वह सारा दोष दूसरे पर ही डालने का प्रयत्न करता है। उसे अपना कोई दोष लगता ही नहीं। उसके सामने आत्म-निरीक्षण की बात ही नहीं होती। आज राजनीति के क्षेत्र में या अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में कहीं भी आत्म-निरीक्षण की बात दिखाई नहीं देती। ईरान के विमान को गिराया गया। यात्री-विमान था। दो सौ नब्बे व्यक्ति मारे गए। इस घटना का कोई औचित्य नहीं बताया जा सकता। निरपराध प्राणियों को मौत के घाट उतार देने का प्रयत्न जघन्य अपराध है। किन्तु वहां भी शायद आत्म निरीक्षण की बात बहुत कम है, तर्क बहुत ज्यादा हैं। धर्म का सबसे पहला सूत्र है-आत्म-निरीक्षण । आत्म-निरीक्षण करना मानसिक स्वास्थ्य का लक्षण है। जो व्यक्ति मानसिक दृष्टि से बीमार होता है, वह पर-निरीक्षण करता है। व्रत : दूसरी कसौटी मानसिक स्वास्थ्य का दूसरा लक्षण है--व्रत । व्रत का अर्थ है-सीमा करना। आहार करना जितना जरूरी है आहार की सीमा करना भी उतना ही जरूरी है। आहार करना शरीर के लिए आवश्यक है और ऊनोदरी का व्रत करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जो व्यक्ति ऊनोदरी व्रत रखता है, वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है और जो ऊनोदरी का व्रत नहीं रखता, वह मानसिक दृष्टि से बीमार है।। बात किए बिना व्यक्ति का काम नहीं चलता, व्यवहार नहीं चलता। किन्तु जो अनावश्यक बतियाता है, बेकार बातें करता है वह मानसिक दृष्टि से बीमार है । आवश्यक बातचीत करने वाला मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होता है। वह सीमा को जानता है । कितनी बात आवश्यक करणीय है-इस तथ्य से वह परिचित होता है। आराम करना बहुत जरूरी है। विश्राम के बिना श्रम नहीं हो सकता । श्रम और विश्राम-दोनों जुड़े हुए हैं। जितना आवश्यक है, उतना आराम करना अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है। किंतु दिन में लेट गए और तीन घंटे तक पड़े-पड़े खटिया तोड़ते रहे, यह बीमारी का लक्षण है। .. नींद लेना स्वास्थ्य का लक्षण है । सीमित समय नींद लेना मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जो व्यक्ति दिन भर नींद में डबा रहता है, अध्ययन के समय नींद लेता है, ध्यान में नींद लेता है, चलते समय नींद लेता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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