________________
६६ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
अनुत्तरित प्रश्न
नौ वर्ष पूरे हो गए । 'मेमनसिंह' ( वर्तमान बंगला देश) में मेरी चचेरी बहन का विवाह था । उस उद्देश्य से मां और चाचा के साथ मैं वहां गया। बीच में हम कलकत्ता पहुंचे। वहां हम सभी बुआ के पास ठहरे । भोजन के पश्चात् मेरे चाचा और उनकी दुकान के कर्मचारी कलकत्ता के बाजार में सामान खरीदने गए। मैं भी उनके साथ चला गया। वे दुकानों में सामान खरीदते रहे और मैं इधर-उधर देखता रहा । रास्ते में चलते-चलते मैं कहीं रुक गया और वे आगे बढ़ गए। न उनको ध्यान रहा और न मुझे ध्यान रहा। मैं अकेला रह गया। मुझे नहीं पता कि मुझे कहां जाना है । न कोठी का पता और न उसके नंबर का पता । पर पता नहीं मेरी अन्तश्चेतना को इन सबका कैसे पता चला ! मुझे जब यह लगा कि मैं अकेला रह गया हूं तब मैंने सबसे पहले एक काम किया- मैंने अपने हाथ की घड़ी खोली, गले में से स्वर्णसूत्र को निकाला और दोनों को जेब में रख लिया । मैं पीछे मुड़ा और अज्ञात की ओर चल पड़ा। मुझे नहीं पता, कहां जाना है, कहां जा रहा हूं । पर अन्तश्चेतना को कोई पता था, मैं ठीक स्थान पर पहुंच गया। कुछ समय बाद मेरे चाचा को पता चला कि मैं उनसे बिछुड़ गया हूं। तब उन्होंने मुझे खोजने के लिए दौड़-धूप की । पुलिस स्टेशन पर गए । मेरे गुम होने की रिपोर्ट लिखाई और वे मुझे खोजते खोजते घर आए । नीचे से ही उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया- 'नत्थू हमसे बिछुड़ गया। उसका कोई पता नहीं चला।' उनकी आंखें डबडबाई हुई थीं । वे बहुत परेशान दीख रहे थे। उनकी बहन ने कुछ क्षणों तक उन्हें कोई बात नहीं बताई । फिर अचानक मुझे भीतर से बाहर लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया । उनकी सारी परेशानी दूर हो गई। उन्होंने पूछा- 'तू यहां कैसे पहुंचा ? मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था। जीवन में सब कुछ उत्तरित नहीं होता । कितना अच्छा होता कि मनुष्य अनुत्तरित का उत्तर दे पाता
I
एक आघात
मेरे पिताजी चार भाई थे। बड़े भाई का नाम था गोपीचन्दजी । उनके एक पुत्र था। उनका नाम था म्हालचन्दजी । युवावस्था में अचानक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org