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नियुक्ति, महाप्रज्ञ नामकरण और आचार्य पद का अभिषेक । गुरुदेव ने जैसे-जैसे आरोहण कराया, वैसे-वैसे मैंने किया, पर केवल व्यवहार की सीमा में सीमित नहीं रहा । गुरु की कृपा को आत्मा की अनुभूति से पृथक् कर कभी नहीं देखा । यही प्रस्तुत पुस्तक का वक्तव्य है, यदि कोई ध्यान से पढ़ सके ।
प्रस्तुत पुस्तक के संपादन में मुनि धनंजयकुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम
किया है ।
जैन विश्व भारती लाडनूं ३४१ ३०६ १ अगस्त १९६६
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आचार्य महाप्रज्ञ
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