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________________ ६२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ वे सारे उद्घाटित हों। मैं मानता हूं कि धर्मसंध में शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है - अध्यात्म-चेतना का जागरण | अध्यात्म चेतना जागृत होती है तो संघ बहुत शक्तिशाली बनता है । मैं कुण्ड को या खड्डे को पसंद नहीं करता, कुएं को पसंद करता हूं । कुण्ड में पानी बाहर से डाला जाता है। बहुत सीमित बात होती है। कुएं में स्रोत फूटता है, जिससे कुएं का पानी असीम होता है । कुण्ड में पानी डाला हुआ ससीम होता है, इसलिए यह बात मुझे पसंद नही है । मुझे यह बात पसंद है कि ऐसा स्रोत फूटे, जिससे अनन्त जल निकलता ही चला जाए। मैं मानता हूं कि अध्यात्म चेतना का जागरण एक ऐसे कुएं को खोदना है, जिसमें शक्ति का स्रोत फूट जाए और शक्ति का अनंत प्रवाह उसमें से निकलता रहे। मैं अपने धर्मसंघ को उस शक्ति से संपन्न देखना चाहता हूं, जिसमें शक्ति का स्रोत अनवरत प्रवहमान हो । मुझे विश्वास है कि गुरुदेव के नेतृत्व में ऐसा संभव हो सकेगा । मैं चाहता हूं कि गुरुदेव हमें दीर्घकाल तक अपनी छत्रछाया दें और वे देखें कि उनका एक शिष्य अपने संघ को अतीन्द्रिय चेतना-जागरण के लक्ष्य तक पहुंचाने में निमित्त बना है । समाज, राष्ट्र और विश्व की समस्याओं के समाधान में आपका धर्मसंघ किस प्रकार उपयोगी बन सकता है? O संसार की मूलभूत समस्या क्या है जो सारी समस्याओं को जन्म दे रही है? वह है-अपने आपकी विस्मृति । व्यक्ति अपने आपको भूल रहा है और दूसरों को सुधारना चाहता है। दूसरों का भला करने से पूर्व व्यक्ति अपने जीवन का निर्माण करे। यदि व्यक्ति के जीवन का निर्माण होगा तो विश्व को सुधरने में कोई समय नहीं लगेगा । संसार में विचित्र - सा चल रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे की चिंता से चिंतित है; किन्तु अपनी चिंता किसी को नहीं है । आध्यात्मिक चेतना के जागरण का सबसे पहला सूत्र होगा - व्यक्ति चौबीस घंटों में कम-से-कम एक घंटा अपने लिए निकाले, उसमें दूसरों की कोई चिंता न करे । वह अपने को देखे, संवारे, निर्मित करे। यदि ऐसा ' होता है तो हम विश्व की समस्या का समाधान देने वाली मूल बात को पकड़ पायेंगे, जिसको पकड़े बिना सुलझाई जाने वाली समस्याएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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