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________________ ४४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ का जीवन मैंने जीया । जब कोई आचार्य बनता है, प्रसन्नता होती है । मैं यह सच कहता हूं कि आचार्य तुलसी जब आचार्य बने तो सबको बहुत प्रसन्नता हुई, पर मुझे बहुत प्रसन्नता नहीं हुई । इसलिए नहीं हुई कि मैंने सोचा - जहां मैं रहता था, मेरे सारे जीवन का संबंध था, अब नहीं रहेगा। आचार्य तुलसी पहले तो मेरे थे और अब सबके बन गए । मैं बहुत कट गया । मैं अपना सौभाग्य मानता हूं । पूज्य गुरुदेव ने मुझ पर एक नया दायित्व सौंपा है। और कसौटियां तो मेरी बहुत होती रही हैं । समय-समय पर अनेक परीक्षाएं हुई हैं, पर आज सबसे बड़ी परीक्षा और कसौटी इन्होंने करनी चाही है । आज तक गुरुदेव ने मुझे जो भी काम सौंपा, मैं उसमें शत-प्रतिशत सफल हुआ हूं। मैं अपने आत्म-विश्वास के साथ पूज्य गुरुदेव के चरणों में यह प्रार्थना उपस्थित करता हूं कि आपने जो कार्य सौंपा है, आपके आशीर्वाद से यह भी शत-प्रतिशत सफल होगा, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं है । परम पूज्य आचार्य भिक्षु और आचार्य भिक्षु की समूची परंपरा में आचार्य कालूगणी तक सभी आचार्यों की जो एक महान् परंपरा और जिस परंपरा को पूज्य गुरुदेव इतने लम्बे समय तक एक प्रगति के साथ जिस प्रकार अग्रसर कर रहे हैं, उसी कड़ी में मुझे जोड़कर और प्रगति का भागीदार बनाया है । मैं कृतज्ञता जैसे छोटे शब्द का प्रयोग करना नहीं चाहता। गुरुदेव ने अनन्त उपकार से मुझे उपकृत बना दिया है, उसके लिए कृतज्ञता की बात बहुत छोटी है I 1 गुरुदेव ! मैं अब तक अपने साज में था और मेरे पास कुछ संत थे काम करता था । आज मैं किसी व्यक्ति विशेष का नहीं रहा । न मेरा साज रहा, न मेरे पास रहने वाले साधु रहे, न कोई दूसरे रहे । मैं तो अब सबका हो गया हूं। मैं आशा करता हूं कि साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका सब मुझे मेरा काम करने में पूरा सहयोग देंगे। मैं चाहूंगा कि पूज्य गुरुदेव का यह आशीर्वाद, असीम करुणा, मुझे निरन्तर उपलब्ध रहे। मैं अपने महान् आचार्यों की परंपरा को और उज्ज्वल बना सकूं, तेरापंथ धर्मसंघ के गौरव को और बढ़ा सकूं, यही आशीर्वाद आचार्यवर से चाहता हूं। युवाचार्य मनोनयन के अवसर पर प्रदत्त वक्तव्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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