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जैन शासन की एकता : आचार की कसौटी २१६ के साथ जुड़ा हुआ होता है इसलिए वह अपरिवर्तनीय है। उत्तर आचार मूल आचार की सुरक्षा पंक्ति के रूप में निर्धारित होता है इसलिए देश, काल और व्यक्ति के सन्दर्भ में उसमें परिवर्तन भी किया जाता है। स्वाभाविक हैं यम संयम और नियम का विभाग वैदिक साहित्य में भी मिलता है। एक प्रसिद्ध सूक्त है
यमानभीक्ष्णं सेवेत,
न नित्यं नियमान् बुधः। यमान् पतत्यकुर्वाणो,
नियमान् केवलान् भजन्॥ संयम और नियम को एक ही दृष्टिकोण से देखने पर कुछ विभ्रम पैदा होता है। संयम या यम स्वाभाविक हैं। उन्हें कोई भी तीर्थंकर या आचार्य बदल नहीं सकता। रागद्वेष मुक्त प्रवृत्ति आचार है, इसके स्थान पर कोई भी यह स्थापना नहीं कर सकता कि राग-द्वेष युक्त प्रवृत्ति भी आचार है। ___ ब्रह्मचर्य की साधना का एक नियम है-मुनि वेश्या के मोहल्ले में गोचरी न जाए। आचार्य भद्रबाहु ने मुनि स्थूलभद्र को वेश्या की चित्रशाला में चतुर्मास बिताने की आज्ञा दी। यह व्यक्ति सापेक्ष परिवर्तन है। सन्दर्भ आहार का जैन शासन में मुख्य दो सम्प्रदाय हैं-श्वेताम्बर और दिगम्बर। इन दोनों में नियम प्रधान आचार का बहुत भेद है। दिगम्बर मुनि दिन में एक ही बार आहार करते हैं, जल पीते हैं। श्वेताम्बर मुनि दिन में अनेक बार आहार-जल का उपयोग करते हैं। दिगम्बर अपने इस आचार को कठोर मानते हैं और श्वेताम्बरों के उस आचार को शिथिल मानते हैं। प्राचीन काल में एक भक्त भोजन की परम्परा रही है और उत्तरकाल में अनेक बार भोजन की परम्परा विकसित हुई है। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। भोजन एक ही बार करना, यह
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