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वर्ष
शेष
आवश्यक है संवत्सरी की समस्या का समाधान २१३
संवत्सरी वि. सं. १६४६
४६ दिन
६६ दिन वि. सं. १६४७
४६ दिन
६६ दिन वि. सं. १६४८
४६ दिन
६६ दिन वि. सं. १६४६
४६ दिन
७ दिन इस विरोधाभास को मिटाने के लिए एक नई परंपरा के सूत्रपात की अपेक्षा है। उस नई परंपरा का क्रम ऐसा होना चाहिए, जिसमें सब सम्प्रदायों का ऐकमत्य हो जाए और लौकिक पंचांग को मान्य कर सारी व्यवस्था पर चिन्तन किया जाए। समस्या चतुर्थी और पंचमी की तिथि की समस्या के मुख्य आधार दो हैं
१. कालकाचार्य द्वारा अपवाद रूप में की गई चतुर्थी की संवत्सरी।
२. पचास और सत्तर दिन की संगति बिठाने के लिए कभी-कभी पंचमी के स्थान पर चतुर्थी को की जाने वाली संवत्सरी।
एक तीसरा विकल्प और बनता है-संवत्सरी से पूर्व ४८ और ५१ दिन मान्य नहीं है। इसी प्रकार संवत्सरी के बाद ६८ और ७१ दिन मान्य नहीं है। यदि संवत्सरी के बाद चातुर्मास में ६८ दिन शेष रहते हों तो संवत्सरी चतुर्थी को की जाती है। इसी प्रकार यदि पंचमी ५१वें दिन आती हो तो संवत्सरी चतुर्थी को की जाती है।
यद्यपि भाष्य-चूर्णिकाल में सामान्य विधि के अनुसार पंचमी की संवत्सरी ही मान्य रही है। यह ५० और ७ दिन के नियम के आधार पर की गई व्यवस्था है। ४वें दिन संवत्सरी की परंपरा उत्तरकालीन प्रतीत होती है। ऐसा प्रसंग कभी-कभी आता है। समस्या उदिया तिथि और घड़िया तिथि की तिथि के विषय में ज्योतिष में दो धारणाएं प्रचलित हैं-एक धारणा के अनुसार सूर्योदय के साथ तिथि का परिवर्तन मान्य है। दूसरी धारणा घड़ी के आधार पर तिधि-परिवर्तन का सिद्धांत मान्य करती है।
तिथि का नामोल्लेख सूर्योदय के साथ होने वाली तिथि का होता है
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