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आवश्यक है संवत्सरी की समस्या का समाधान २११ हैं और दिगम्बर परम्परा में नौ दिन उसके बाद जोड़े गए हैं। मूल दिन (पंचमी) में कोई अन्तर नहीं है। संवत्सरी : आज की समस्याएं संवत्सरी के संबंध में मुख्य समस्याएं चार हैं
१. दो श्रावण मास २. दो भाद्रपद मास ३. चतुर्थी और पंचमी ४. उदिया तिथि और घड़िया तिथि।
जैन ज्योतिष के अनुसार वर्षा ऋतु में अधिक मास नहीं होता। इस दृष्टि से दो शावण मास और भाद्रपद मास की समस्या ही पैदा नहीं होती। ज्योतिष के अनुसार वर्षा ऋतु में अधिक मास हो सकता है। दो श्रावण मास या दो भाद्रपद मास होने पर पर्वाराधन की विधि इस प्रकार है-कृष्ण पक्ष के पर्व की आराधना प्रथम मास के कृष्ण पक्ष में और शुक्ल पक्ष के पर्व की आराधना अधिमास के शुक्ल पक्ष में। समस्या अधिक मास की जैन संप्रदायों में कुछ सम्प्रदाय दो श्रावण होने पर दूसरे श्रावण में पर्युषणा की आराधना करते हैं। भाद्रपद मास दो हों तो प्रथम भाद्रपद में पर्युषणा की आराधना करते हैं। ऐसा करने वालों का तर्क यह है कि संवत्सरी की आराधना पचासवें दिन करनी चाहिए। इस तर्क में सिद्धांत का एक पहलू ठीक है। किन्तु उसका दूसरा पहलू ७ दिन शेष रहने चाहिए, विघटित हो जाता है। संपूर्ण नियम पहले ५० दिन और बाद में ७ दिन-दोनों पक्षों से सम्बन्धित है।
जो पचासवें दिन को प्रमाण मानकर संवत्सरी करते हैं, उनके शेष ७ दिनों का प्रमाण भी रहना चाहिए। इसी प्रकार ७० दिन शेष रहने की बात पर दो श्रावण होने पर भाद्रपद में और दो भाद्रपद होने पर दूसरे भाद्रपद में संवत्सरी करने की स्थिति में संवत्सरी से पहले ५० दिन की व्यवस्था विघटित हो जाती है। इस समस्या का समाधान खोजना जरूरी है। इसका सीधा-सा समाधान है अधिक मास को मलमास या
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