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________________ १८० अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ व्यक्ति संपर्क में आते हैं। बड़े-बड़े राजनयिक तथा सामाजिक कार्यकर्त्ता संपर्क में आते हैं। जो बात केवल आचार्य के लिए थी वह आज सबके लिए हो गई । ऐसी स्थिति में चिन्तन होना चाहिए । लोकापवाद न हो । जैन धर्म के प्रति लोगों में घृणा और तिरस्कार के भाव न पनपें - इस ओर हमें प्रयत्नशील रहना चाहिए ।' यह चिन्तन की भूमिका बनी। आखिर सभी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में कुछ सोचा जाना चाहिए । वस्त्रों के प्रक्षालन की एक सीमा निश्चित होनी चाहिए। यह है परिवर्तन। इसे परिवर्तन कहा जा सकता है कि पहले नहीं था और अब हो गया । किन्तु जो बिलकुल नयी बात हो, जैसे- माइक में बोलना, यह परिवर्तन नहीं है । यह एक नया प्रश्न है । जब नया प्रश्न उपस्थित होता है तब उसके लिए शास्त्र का निरीक्षण, चिन्तन और अपना विवेक काम आता है । अब आप पूछ सकते हैं कि माइक में बोलना है या नहीं ? शास्त्रों में न तो कोई माइक का नाम है और न कोई बोलने की चर्चा है । जब चर्चा ही नहीं है तो फिर ये सारी बातें कैसे होंगी। जब गांव ही नहीं तो फिर सीमा की बात कैसे होगी? न्यायशास्त्र का एक न्याय है-न हि वंध्यापुत्रः गौरः कृष्णो वा चिन्त्यः - बांझ का पुत्र काला है या गोरा - यह चिन्तन नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके बेटा होता ही नहीं । जब माइक ही नहीं था तो उसमें बोलना चाहिए या नहीं, यह प्रश्न ही नहीं होता । अब प्रश्न होता है कि जो बात शास्त्रों में नहीं है, उसके लिए क्या करना चाहिए? यह बहुत अच्छा प्रश्न है । इस विषय में हमारी परंपरा है और आगम का विधान भी है कि जब केवलज्ञानी, आगमपुरुष, दसपूर्वी, अतिशयज्ञानी विद्यमान हों तो वे जो कहें वैसा कर लेना चाहिए। किसी आगम की जरूरत नहीं है । आगम का एक विधान है कि साधु को वेश्या के मोहल्ले में गोचरी नहीं जाना चाहिए । किन्तु भद्रबाहु स्वामी आगमपुरुष थे । स्थूलिभद्र मुनि उनके समक्ष आए और वेश्या के घर चतुर्मास करने की आज्ञा मांगी। उस वेश्या के घर, जिसके घर में गृहस्थ जीवन के बारह बरस बिताए थे और रागरंग में रहे थे । उसी के घर चातुर्मास करने की आज्ञा मांगी। आचार्य भद्रबाहु ने कहा- जाओ, वहां चातुर्मास करो। आप कह सकते हैं कि वेश्या के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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