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२२. तेरापंथ के कुछ प्रतिबिम्ब
जो नहीं जानता कि तेरापंथ क्या है? उसके लिए वह अच्छा भी नहीं है, बुरा भी नहीं है। अच्छाई या बुराई का भाव परिचय से प्राप्त होता है। जैसे-जैसे तेरापंथ विकास में आया, परिचय बढ़ा, वैसे-वैसे वह कसौटी पर चढ़ा। किसी ने उसकी अच्छाइयों को पकड़ा, किसी ने खामियों को और किसी ने दोनों को। जो अनुरक्त होता है, वह केवल अच्छाइयों को देखता है। जो धृष्ट होता है वह केवल खामियों को पकड़ता है। जो मध्यस्थ होता है वह दोनों को देखता है। संस्थान जो होता है, वह ऐसा नहीं होता कि उसमें केवल अच्छाइयां ही हों या उसमें केवल खामियां ही हों। मात्रा भेद से कहा जाता है यह अच्छा है, यह बुरा है। ____ मैं तेरापंथ की परिधि में ही जन्मा हूं, पला-पुसा हूं। वहीं मुझे शिक्षा-दीक्षा मिली है। एक दिन मैं जन्मना तेरापंथी था। आज मैं कर्मणा तेरापंथी हूं। मैं कहूं तेरापंथ अच्छा है तो मेरी श्रद्धा का अतिरेक समझा जायेगा। मैं तेरापंथ की खामियां बताऊं तो मेरे ही साथी मेरी निष्ठा को अपरिपक्व मानने लग जाएंगे। इस विषम मार्ग पर मैं क्यों चलूं? क्यों श्लाघा करूं और क्यों खामियों का बखान करूं? अच्छा यही है कि कोई तीसरा ही मार्ग चुनूं। मैं देने का यत्न न करूं। स्फटिक बने रहना अच्छी बात है। दर्शक स्वयं देख लेंगे, जो प्रतिबिम्ब होगा। । इधर कुछ लोग आश्चर्य में हैं। आश्चर्य इस बात का है कि लाखों व्यक्तियों का संगठन; शक्ति और अर्थ का सहारा लिए बिना कैसे निभ रहा है?
आचार्य के पास ऐसी क्या सत्ता है, जो लाखों व्यक्ति उन्हीं को सब कुछ मानकर चलते हैं। अहिंसा की शक्ति और अपरिग्रह की सत्ता सचमुच एक प्रश्न है। इसका समाधान ढूंढ़ा जाता है-आचार्यश्री तुलसी के
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