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११२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
शारीरिक दृष्टि से स्वास्थ्य का अर्थ है-हाड़ों की मजबूती।
मानसिक दृष्टि से स्वास्थ्य है अपने आप में टिके रहना और आत्मिक दृष्टि में-आगमों की भाषा में जो आत्मस्थ, गीता के शब्दों में जो स्थितप्रज्ञ और योग की भाषा में जो समाधिस्थ है, वही स्वस्थ है।
क्या मैं पूछू-उपस्थित लोग स्वस्थ हैं? शारीरिक दृष्टि से हो सकते हैं किन्तु वह भी संभव नहीं है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखें वैसी खाद्य-सामग्री कहां है? इस मिलावट के युग में शुद्ध खान-पान एक समस्या है। मानसिक स्वास्थ्य भी कैसे हो, छोटी छोटी बातों में क्रोध का पारा चढ़ जाता है, लोभ का पारावार नहीं। ____मन की कितनी चंचलता और कितना विक्षेप? फिर मानसिक स्वास्थ्य कैसे हो? जहां मानसिक चंचलता और विक्षेप अधिक होता है, वहां पागलपन अधिक होता है। कई विकसित कहलाने वाले देशों में इसलिए पागलपन अधिक है कि वहां पर उन्माद और पागलपन को उभारने वाले साधन अधिक हैं। यह भारत का सौभाग्य ही समझिए कि यहां पागलपन कम है क्योंकि यहां उन्माद और पागलपन को उभारने वाले साधन अधिक नहीं हैं, और होने भी नहीं चाहिए। विज्ञान का विकास प्रगति पर है। वैज्ञानिक का ध्यान चन्द्रलोक की यात्रा में केन्द्रित है। एक ओर अणविक शस्त्रों का परीक्षण चल रहा है। उनकी स्पर्धा में चन्द्र यात्रा तो दूर, मनुष्य लोक की यात्रा बनी रहेगी, यह भी बहुत है। इसलिए आवश्यक है कि आत्म-स्वास्थ्य के लिए अध्यात्म की ओर ध्यान दें। अन्यथा विज्ञान प्रलय की ओर ले जाएगा। अध्यात्म की धारा भारत के मानस में परिव्याप्त थी, आज वह क्षीण हो रही है। धार्मिक लोग साम्य और एकता के मंत्र को विस्मृत किए जा रहे हैं। जैन-दर्शन ने कहा-सब आत्माएं समान हैं। आत्मा को आत्मा से देखो। वेदान्त के अनुसार सबका मूल एक है। सत्य एक है, विद्वान् लोग उसे अनेक कहते हैं- “एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति”--यह अन्तर्दर्शन ही अध्यात्मदर्शन है। ___ मेरा जगत् मेरे तक सीमित है दूसरों की चिन्ता क्यों करूं? इस भावना के विकास से मनुष्य दूसरों का अनिष्ट कर सकता है। जब चिन्तन का स्रोत यह रहे कि “हम सब एक हैं" तब कौन किसको कष्ट
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