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________________ दीक्षा का प्रयोजन १०७ अबोध बालक को बोध देकर समकक्ष बना डाला। आज मैं महान् ज्ञानी और विचक्षण मंत्री मुनि को शत-शत प्रणाम करता हूं, जिन्होंने मेरे निर्माण में वह सब कुछ किया, जो उन्हें करना था। आज मैं वात्सल्य की प्रतिमूर्ति भाईजी महाराज को भावांजलि प्रस्तुत करता हूं, जिन्होंने हमारे शिक्षण के अतिरिक्त सारी जिम्मेदारियां ओढ़कर हमारा निर्माण किया। इन वर्षों में उनकी करुणा, कृपा और औदार्य गद्गद् करनेवाला था। काश! आज वे होते। ___ आज मैं मां बालूजी के प्रति नत हूं, जिन्होंने मेरे निर्माण में प्रतिपल जागरूकता बरती, मुझे संयमाभिमुख और आचार्याभिमुख रहने की सतत प्रेरणा देती रहीं। इन सबसे मैं उपकृत हुआ हूं। और भी अनेक प्रेरक तत्त्व जीवन में रहे हैं, उन सबके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। ____ लोग मुझसे पूछते हैं-मैं क्या हूं? मैं कौन हूं? इसका सहज समाधान यह है१. मार्गातीतं गन्तुमिच्छामि शश्वत्, देशातीतं द्रष्टुमिच्छामि कामम् । भावातीतं ज्ञातुमिच्छामि नित्यं, शब्दातीतो येन भूयासमाशु॥ २. संकल्पशक्तिः प्रबला मम स्यात्, एकाग्रता मे शिखरं प्रयाता। विनिर्मलं चित्तमिदं विधातुं, चित्ते प्रसिद्धे सकलं प्रसिद्धम्॥ ३. श्वासं विजानामि मनोभिजाने, जानामि देहं वचनं च जाने। जानामि वर्णान् कथमस्मि विद्वान्, सत्यानुसंधानपरोहमस्मि॥ दिशं विजानामि ऋतां प्रशस्ता, मार्ग विजानामि ऋजु प्रशस्तम्। दृष्टिं विजानामि विलोकनाहों, द्रष्टास्मि संदर्शनतत्परोन्हम्॥ निष्ठानुशास्तेः सहजोपलब्धा, लब्धं तथैक्यं सहजं मया हि। अणुव्रत-ध्यानपरंपरा च, नवोविकासोजनि तस्य शिष्यः॥ * पचासवें दीक्षा वर्ष प्रवेश पर प्रदत्त वक्तव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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