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जनशासनम् २०१ जिसमें पौरुष पग-पग पर नई रेखाएं सृजन करता है, जिसमें सर्वसमानता का सिद्धान्त सबको आकृष्ट करता है, जिसमें उत्कृष्ट अभय है और भयभीत को अभय बनाने की क्षमता है, उस अणुव्रत दर्शन की यह पवित्र रत्नत्रयी-श्रम, समता और अभय सदा फले-फूले ।
यस्मिन्नाग्रहबिन्दवो निपतिता लीना विलीना नये, यस्मिन् यात्यसहिष्णुता प्रशमनं वैचारिकी प्रोद्धता । यस्मिन् मानवता प्रयाति समतां जात्यादि भेदोज्झिता,
तज्जैनं मनसोनुशासनपरं स्याच्छासनं स्वासनम् ॥८॥ जिस विचारधारा की नयपद्धति में आग्रह के बिन्दु पड़कर लीन हो जाते हैं, जिसमें वैचारिकी असहिष्णुता और उद्धता उपशान्त हो जाती है और जिसमें मानवता जाति आदि का भेद त्यागकर समतामय हो जाती है, वह मन पर अनुशासन करने वाला जैन-शासन अपना आसन बने-आधार बने ।
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